ऐसा लगता है कि कांग्रेस तय नहीं कर पा रही है कि वह राजस्थान की अपनी राजनीतिक लड़ाई कहां लड़े-सड़कों पर या अदालतों में? वह राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट भी पहुंची है और यह धमकी भी दे रही है कि यदि राज्यपाल विधानसभा सत्र बुलाने के प्रस्ताव को स्वीकार नहीं करते तो उसकी ओर से देश भर में राजभवनों का घेराव किया जाएगा। कांग्रेस की ओर से इसके पहले जयपुर के राजभवन के घेराव की धमकी दी जा चुकी है, जिसके जवाब में राज्यपाल कानून एवं व्यवस्था को लेकर चिंता जता चुके हैं।

नि:संदेह यह कोई अच्छी स्थिति नहीं कि सत्ता में बैठे लोग ही राजभवन घेरने की धमकी दें, लेकिन आज की राजनीति तो मर्यादाओं के उल्लंघन के लिए ही जानी जाती है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राज्यपाल को विधानसभा सत्र बुलाने का प्रस्ताव दोबारा भेजते हुए यह उम्मीद जताई है कि उसे मंजूर कर लिया जाएगा, लेकिन शायद वह इसे लेकर सुनिश्चित नहीं और इसीलिए देश भर के राजभवनों को घेरने की धमकी दे रहे हैं। राज्यपाल विधानसभा सत्र बुलाने के प्रस्ताव पर चाहे जो फैसला करें, इसका निर्धारण सदन में ही हो सकता है कि गहलोत सरकार को बहुमत हासिल है या नहीं?

यह सही है कि उपमुख्यमंत्री पद से हटाए गए सचिन पायलट 18 विधायकों के साथ बगावत की राह पर हैं, लेकिन अभी यह स्पष्ट नहीं कि वह विश्वास मत के समय सरकार के साथ होंगे या खिलाफ खड़े होंगे अथवा तटस्थ रहेंगे? इसी तरह यह भी साफ नहीं कि सचिन पायलट खेमे के विधायकों के बगैर गहलोत बहुमत साबित करने में सक्षम होंगे या नहीं? चूंकि यह जानने का कोई तरीका नहीं कि गहलोत के पास बहुमत है या नहीं इसलिए बेहतर यही होगा कि उन्हें विश्वास मत पेश करने का अवसर दिया जाए। राज्यपाल को केवल निष्पक्ष होना ही नहीं चाहिए, बल्कि दिखना भी चाहिए। उनके पास विधानसभा सत्र बुलाने के प्रस्ताव को अस्वीकार करने के ठोस कारण होने चाहिए।

राजस्थान की राजनीतिक लड़ाई का ऊंट चाहे जो करवट ले, सभी दलों को यह समझने में और देर नहीं करनी चाहिए कि राजनीति को संचालित करने वाले नियम-कानूनों में सुधार की सख्त जरूरत है। केवल इस जरूरत को पूरा करने से ही काम चलने वाला नहीं है, क्योंकि बात तब बनेगी जब राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र वास्तव में कायम होगा। अभी तो आंतरिक लोकतंत्र दिखावा ही अधिक है। राजनीतिक दलों को सुप्रीम कोर्ट के इस सवाल का जवाब देने के लिए भी तैयार रहना चाहिए कि क्या चुने गए प्रतिनिधि असहमति नहीं जता सकते? अच्छा हो कि कांग्रेस ही नहीं, अन्य दल भी इस सवाल का जवाब दें।