फ्लैश--
एक्सपायरी दवाओं की री-पैकिंग कर बेचने वाले गिरोह के भंडाफोड़ से यह साबित हो गया है कि दवा कारोबारी अपनी तिजोरी भरने के लिए लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने के साथ उनकी गाढ़ी कमाई को लूट रहे हैं
--

राजधानी में नकली दवाओं के कारोबार का भंडाफोड़ कोई नई बात नहीं है। यह जरूर है कि तेरह साल बाद बड़े पैमाने पर हुई छापेमारी में करोड़ों की नकली दवाएं बरामद की गई हैं, गिरोह के जिन तीन लोगों को पकड़ा गया है उनसे पुलिस को जानकारी मिली है कि यह कारोबार बिहार ही नहीं दूसरे राज्यों में भी फैला है। उनका गिरोह संगठित है जिसके तार प्रदेश और दूसरे राज्यों के ऐसे व्यापारियों से जुड़े हैं जो एक्सपायरी दवाओं की खरीद-फरोख्त करते हैं। नकली दवाओं के मामले में एक राहत यह जरूर है कि इनका उपभोग दूसरे नकली सामानों की तरह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक नहीं है। सिर्फ जेब हल्की होती है, लेकिन इसका गंभीर पहलू यह है कि बीमारी से निजात के लिए जिन लोगों के घर-खेत और गहने बिक जाते हैं, उन्हें ये दवाएं सड़क पर ला देती हैं। कारोबारी एक्सपायरी दवाओं को कौडिय़ों के मोल बाजार से उठवाकर इसकी री-पैकिंग कर वेस्ट मैटेरियल को बाजार में पहुंचकर खुद लाखों-करोड़ों कमाते हैं और दुकानदारों को भरपूर लाभ पहुंचाते हैं। दवा विक्रेता जानते हैं कि नकली दवाओं से उनकी जेब भी भरेगी और खतरा इसलिए नहीं है, क्योंकि एक्सपायरी दवाओं का रियेक्शन नहीं होता। ये फायदा नहीं पहुंचाएंगी तो कोई नुकसान भी नहीं करेंगी। इस तरह उपभोक्ता ही पूरी तरह ठगी का शिकार होता है। सूबे में तकरीबन पचास हजार के आसपास मेडिकल स्टोर हैं। अधिकतर फार्मासिस्ट के लाइसेंस के बिना चल रहे हैं। हाल में सरकार ने सख्ती करते हुए फार्मासिस्ट रखने की अनिवार्यता लागू की थी तो उसका पुरजोर विरोध हुआ था। एक सच यह भी है कि छोटी-मोटी बीमारियों की टेबलेट, कैपसूल से लेकर टॉनिक और सिरप तक परचून की दुकानों में खुलेआम बिकती है। आज तक ड्रग इंस्पेक्टर के स्तर पर इन दुकानों को न तो कोई नोटिस भेजा गया और न कभी छापे की कार्रवाई हुई। नकली दवाओं की खपत भी ऐसी दुकानों में आसानी से हो जाती है। ग्रामीण इलाकों में नकली दवाओं की सबसे ज्यादा खपत होती है। पटना के थोक दवा बाजार में जब-तब छापेमारी में सैंपल दवाओं की भी बरामदगी होती है। छोटी दवा की दुकानों में दवा कंपनियों के प्रतिनिधि भी सैंपल दवाओं की बिक्री कर अपनी जेबें भरते रहते हैं। हालांकि ये दवाएं असली होती हैं। शुक्रवार को 'जहर का कारोबार' करने वाले लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर चंद घंटों में छापेमारी कर जिस तरह दस करोड़ रुपये मूल्य की नकली दवाइयां बरामद की हैं। उससे साफ है कि इस अवैध कारोबार के खिलाफ लगातार कार्रवाई और दवा विक्रेताओं की निगरानी की जरूरत है। हालांकि यह तभी संभव है जब पुलिस और ड्रग इंस्पेक्टर संयुक्त रूप से रणनीति बनाकर इसके खिलाफ अभियान छेड़ें।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]