यह अच्छा हुआ कि भारत सरकार काबुल स्थित दूतावास से अपने कर्मचारियों को निकालकर स्वदेश ले आई। अब अगली चुनौती वहां रह गए अन्य भारतीयों को लाने की है। इनमें वे हिंदू-सिख भी हैं, जो अफगानिस्तान के ही निवासी हैं। चूंकि अफगानिस्तान के हालात बहुत ही अस्थिर और दहशत पैदा करने वाले हैं, इसलिए सभी भारतीय नागरिकों को वहां से निकालने के काम को प्राथमिकता प्रदान की जानी चाहिए। यह काम पूरा हो जाने के बाद ही भारत को अफगानिस्तान के संदर्भ में अगला कदम उठाना चाहिए। फिलहाल वहां के तेजी से बदलते हालात पर निगाहें जमाए रखने के अलावा और कोई उपाय नहीं। मौजूदा स्थितियों में भारत अपने अगले कदम का तब तक निर्धारण नहीं कर सकता, जब तक यह स्पष्ट न हो जाए कि अफगानिस्तान में तालिबान के प्रभुत्व वाली कैसी सरकार गठित होती है और वह किस तरह की शासन व्यवस्था चलाती है? भले ही तालिबान नेता यह कहने और जताने में लगे हों कि वे बदल गए हैं और उनसे किसी को घबराने या फिर डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन उन पर भरोसा करने का कोई कारण नहीं। सच तो यह है कि खुद अफगानिस्तान की जनता उन पर भरोसा नहीं कर पा रही है और इसीलिए हजारों अफगानी जैसे-तैसे वहां से निकल आना चाहते हैं।

समस्या केवल तालिबान के भावी रुख-रवैये को लेकर ही नहीं, बल्कि इसकी भी है कि वे किसके इशारे पर चलना पसंद करते हैं। इसकी भरी-पूरी आशंका है कि वे पाकिस्तान और चीन के हिसाब से अपनी रीति-नीति तय करेंगे। वे कतर, तुर्की और रूस के प्रभाव में भी आ सकते हैं। इन सब देशों और खासकर पाकिस्तान, चीन और रूस का मकसद अफगानिस्तान में स्थिरता लाना नहीं, बल्कि उस रिक्तता को भरना है, जो अमेरिका के वहां से निकल जाने के कारण पैदा हुई है। अफगानिस्तान अमेरिका विरोधी शक्तियों का अखाड़ा बन जाए तो हैरत नहीं। जो भी हो, पाकिस्तान और चीन का भारत विरोधी रवैया किसी से छिपा नहीं। ये दोनों देश अफगानिस्तान में भारतीय हितों को नुकसान पहुंचाने का काम कर सकते हैं। भारत को जितना सतर्क अफगानिस्तान के नए शासन से रहना होगा, उतना ही पाकिस्तान और चीन के रवैये को लेकर भी। चूंकि तालिबान के अफगानिस्तान में काबिज होने के बाद वहां किस्म-किस्म के आतंकी संगठनों के सिर उठाने का खतरा है और यह किसी से छिपा नहीं कि लश्कर और जैश जैसे पाकिस्तानी आतंकी गुटों की तालिबान से साठगांठ है, इसलिए भारत को यह देखना होगा कि उसकी सुरक्षा के लिए कोई खतरा न पैदा होने पाए। यह सही समय है कि वह कश्मीर में होने वाली घुसपैठ को रोकने के लिए नए सिरे से सक्रिय हो।