छत्तीसगढ़ विधानसभा के नए भवन के भूमि पूजन समारोह को संबोधित करते हुए कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक बार फिर वही सब कहा जो इसके पहले न जाने कितनी बार कह चुकी हैं। उन्होंने कहा कि देश में बोलने की आजादी खतरे में है और संविधान एवं लोकतंत्र नष्ट हो रहा है। वह इतने तक ही सीमित नहीं रहीं। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि सरकार न केवल देश में नफरत का जहर फैला रही है, बल्कि यह भी चाहती है कि लोग अपना मुंह बंद रखें। यही सब बातें उन्होंने दस दिन पहले भी कही थीं। सच तो यह है कि एक अर्से से वह इसी तरह की घिसी-पिटी बातें दोहरा रही हैं। लगता है कि वह राहुल गांधी से प्रेरणा ले रही हैं, जो इस तरह की तत्वहीन बातें करने में माहिर हो चुके हैं और जिसके चलते कांग्रेसजन भी उनसे आजिज आ चुके हैं।

सरकार की रीति-नीति से असहमति जताने का यह मतलब नहीं कि उस पर उलटे-सीधे आरोप लगाए जाएं और उसके हर फैसले का बिना सोचे-समझे विरोध किया जाए। पहले तो राहुल ही ऐसा ही करते थे, लेकिन अब सोनिया गांधी भी उनकी राह पर चल निकली हैं। उनकी ओर से बोला तो खूब जा रहा है, लेकिन उसे सुना नहीं जा रहा है। इसका कारण यही है कि उनकी ओर से कोई तुक की बात मुश्किल से ही की जाती है।

सोनिया और राहुल की मानें तो देश गड्ढे में जा रहा है और कहीं कुछ ठीक नहीं हो रहा है। आखिर यह अंधविरोध की सनक नहीं तो और क्या है कि लद्दाख में चीनी सेना की हरकत और कोरोना संकट को लेकर सरकार को जीभर कोसने के बाद यह ठान लिया गया कि राष्ट्रीय महत्व की परीक्षाओं-जेईई और नीट का विरोध करना है? अगर परीक्षाएं इतनी ही गैर जरूरी हैं तो फिर राजस्थान सरकार विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाएं क्यों करा रही है? क्या कोरोना वायरस केवल जेईई और नीट देने वाले छात्रों के लिए ही खतरा है?

सवाल यह भी है कि एक टीवी एंकर के खिलाफ कांग्रेसियों ने डेढ़ सौ एफआइआर क्या इसीलिए दर्ज कराई थीं ताकि सोनिया गांधी बोलने की आजादी को खतरे में पड़ा देख सकें? आखिर लोकतंत्र को खतरे में देख रहीं सोनिया कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र की कितनी परवाह कर रही हैं? जो स्थिति सोनिया और राहुल की है वही प्रियंका गांधी की भी है। उनकी भी समस्त राजनीति मोदी-योगी सरकार के खिलाफ ट्वीट करने तक सीमित है। यह राजनीति नहीं, अपने राजनीतिक विरोधी के प्रति व्यक्त की जानी वाली कुंठा है। यदि गांधी परिवार कांग्रेस का भला चाहता है तो अपनी कुंठा छोड़े।