पॉश इलाके गांधी नगर में मंत्रियों से लेकर प्रशासनिक अधिकारियों के सरकारी आवासों में कुंडी डालकर बिजली की चोरी चिंता का विषय है। एक तरफ सरकार बिजली चोरी रोकने के लिए आए दिन फरमान जारी कर रही है, लेकिन मंत्रियों और अधिकारियों के गिरेबान तक नहीं पहुंच पा रही है। चोरी रोकने के लिए बिजली विभाग ने शहर के अधिकतर इलाकों में इनसुलेटिड तारें डाल दी है, जिससे बिजली चोरी रोकी जा सके लेकिन मंत्रियों, विधायकों व प्रशासनिक अधिकारियों के घरों से गुजरने वाले बिजली के तारों को बदला नहीं गया है। अगर शहर के माननीय लोग बिजली की चोरी करेंगे तो आम लोग से क्या उम्मीद की जा सकती है? विधानसभा में हाल ही में मुख्यमंत्री का यह बयान कि जम्मू-कश्मीर में 70 से अधिक सरकारी विभागों की 1,882 करोड़ रुपये बिजली की देनदारी है, चौंकाने वाला है। माननीय तो दूर सरकारी विभाग मुफ्त में बिजली फूंक कर विभाग के घाटे को पूरा नहीं होने दे रहे। विडंबना यह है कि इनमें सेना, सुरक्षाबल और राज्य पुलिस भी शामिल हैं। इतना ही नहीं, जलापूर्ति विभाग की देनदारी 571.38 करोड़ रुपये है। अगर यह विभाग अपने बिल चुकता कर दें तो वर्षों से घाटे में चल रहे बिजली विभाग करोड़ों की देनदारी से उबर सकता है।

विडंबना यह है कि सरकार बिजली चोरी के लिए आम जनता को दोषी ठहरा रही है, जबकि हकीकत यह है कि सरकारी विभाग और उन्हें चला रहे मंत्री व प्रशासनिक अधिकारी करोड़ों रुपये का चूना लगा रहे हैं। आम जनता की देनदारी 250 करोड़ रुपये है। यह देनदारी मार्च 2015 से अक्टूबर 2017 की है। दुख की बात यह है कि राज्य बिजली क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं बन पाया है और सब्सिडी में केंद्र से मिलने वाली बिजली का खर्चा भी साल दर साल बढ़ता जा रहा है। राज्य में बिजली का खस्ताहाल ढांचा और विभागीय उदासीनता भी काफी हद तक बिजली चोरी के लिए जिम्मेदार है। बिजली चोरी से होने वाला घाटा साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। सोचनीय विषय यह है कि राज्य में 28 लाख राशन कार्डधारक हैं, जबकि 16 लाख बिजली कनेक्शन है। राज्य में 61 फीसद बिजली चोरी हो रही है। सरकारी विभागों पर जब तक नकेल नहीं कसी जाती तब तक बिजली घाटे से नहीं उबरा जा सकता।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]