आर्थिक विकास का पैमाना मानी जाने वाली सकल घरेलू विकास दर यानी जीडीपी के ताजा आंकड़े उत्साहित करने वाले हैं। मौजूदा वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही यानी अक्टूबर से लेकर दिसंबर तक जीडीपी 0.4 प्रतिशत दर्ज की गई। चूंकि लगातार दो तिमाही में विकास दर नकारात्मक रहने के कारण तकनीकी तौर पर देश मंदी से ग्रस्त मान लिया गया था, इसलिए अब वह उससे बाहर भी आ गया। वैसे तो देश को मंदी से बाहर आना ही था, लेकिन उस पर मुहर लगने का विशेष महत्व है। जीडीपी के ताजा आंकड़े सकारात्मक माहौल का निर्माण करने और इस भरोसे को बल देने वाले हैं कि आने वाला समय और बेहतर होगा। इसके संकेत विभिन्न एजेंसियों ने भी दिए हैं। जहां अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने यह अनुमान लगाया है कि आगामी वित्त वर्ष में भारतीय अर्थव्यवस्था 11.5 प्रतिशत की वृद्धि हासिल कर सकती है, वहीं रेटिंग एजेंसी मूडीज का आकलन है कि विकास दर 13.7 प्रतिशत हो सकती है। खास बात यह है कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और मूडीज, दोनों ने ही अपने अनुमान में सुधार कर पहले के मुकाबले अधिक विकास दर रेखांकित की है। उल्लेखनीय यह भी है कि आगामी वित्त वर्ष भारत दुनिया में सबसे तेज विकास दर वाला देश होगा। इससे भारत की आर्थिक क्षमता का तो पता चलता ही है, यह भी संकेत मिलता है कि पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था वाला देश बनने का लक्ष्य अभी भी हासिल किया जा सकता है। नि:संदेह इस लक्ष्य को आसान बनाने के लिए बहुत कुछ करना होगा, क्योंकि वह कोरोना संकट अभी खत्म नहीं हुआ, जिसने भारत के साथ दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं का बेड़ा गर्क कर दिया। 

टीकाकरण के बीच ऐसे राज्यों की संख्या बढ़ना शुभ संकेत नहीं, जहां कोरोना संक्रमित बढ़ रहे हैं। फिर सिर उठाते कोरोना पर प्राथमिकता के आधार पर लगाम लगानी होगा, अन्यथा अर्थव्यवस्था को मजबूती देने के उपायों पर पानी फिर सकता है। इस मामले में उन राज्यों को विशेष सतर्कता दिखानी चाहिए, जहां कोरोना के मरीज बढ़ रहे हैं। चूंकि जीडीपी के आंकड़े यह भी बताते हैं कि किस सेक्टर में अपेक्षा के अनुकूल वृद्धि हुई और किस में प्रतिकूल, इसलिए उन कारणों का प्राथमिकता के आधार पर निवारण भी करना होगा, जिनके चलते कुछ सेक्टर पर्याप्त वृद्धि हासिल करते नहीं दिख रहे। वैसे तो सरकार को इसके जतन करने होंगे कि सभी सेक्टर आगे बढ़ें, लेकिन उसे उन सेक्टरों की बेहतरी के लिए खास उपाय करने चाहिए, जो कहीं अधिक रोजगार के अवसर पैदा करते हैं। यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि अर्थव्यवस्था की सेहत सुधरने का असर रोजगार के बढ़े अवसरों के रूप में दिखाई दे।