वर्ष 2013 में जब सारधा चिटफंड घोटाले का भंडाफोड़ हुआ तो इसके बाद बंगाल ही नहीं देशभर में रोजवैली समेत कई और चिटफंड कंपनियों का फर्जीवाड़ा सामने आया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया और चिटफंड घोटाले की जांच सीबीआइ को सौंपी गई। नेता, मंत्री, सांसद समेत कई प्रभावशाली लोगों की गिरफ्तारी हुई। एजेंट से लेकर निवेशक समेत कई लोगों ने आत्महत्या कर ली थी। लोगों का चिटफंड से विश्वास खत्म हो गया था। परंतु, इस समय फिर देखा जा रहा है कि कुछ चिटफंड कंपनियां नए रूप में नई योजना के साथ जंजाल फैला रही हैं। इसकी भनक बंगाल सरकार को लगने के बाद उन चिटफंड कंपनियों पर नकेल कसने के लिए सरकार ने कार्रवाई शुरू करने को निगरानी कमेटी गठित करने का निर्णय लिया है। राज्य के मुख्य सचिव मलय दे के नेतृत्व में एक निगरानी व समन्वय कमेटी गठित की गई है, जिसमें गृह सचिव, उपभोक्ता विभाग के सचिव के अलावा विभाग के कुछ और अधिकारियों को शामिल किया गया है। यह कमेटी रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया व बाजार नियामक संस्था सेबी के साथ ही समन्वय रखते हुए कार्य करेगी। सारधा घोटाले के सामने आने के बाद केंद्रीय एजेंसियों के साथ राज्य प्रशासन के समन्वय को लेकर भी सवाल उठे थे। परंतु, इस बार सरकार किसी तरह का जोखिम लेने के पक्ष में नहीं है। इसीलिए जिले-जिले में डीएसपी रैंक के अधिकारी को नोडल आफिसर के रूप में नियुक्त कर चिटफंड कंपनियों की गतिविधियों पर निगरानी रखने के लिए कमेटी बनाई जाएगी। पहले चिटफंड कंपनियां भारी ब्याज के साथ मूलधन लौटाने का झांसा देकर लोगों से रुपये लेती थीं। अब कुछ कंपनियां लोगों से रुपये जमा सोने व हीरे के गहने देने के नाम पर ले रही हैं। इसके अलावा और भी कुछ वस्तु देने का प्रलोभन दिया जा रहा है। यह जानकारी मुख्यमंत्री ममता बनर्जी तक पहुंचने के बाद ही उन्होंने शुक्रवार को उस पर कार्रवाई के लिए उच्चस्तरीय कमेटी गठित करने का निर्देश दे दिया। आज जिस तरह से सरकार चिटफंड कंपनियों के खिलाफ सक्रिय हो रही है वैसी ही सक्रियता यदि 2013 से पूर्व में हुई होती तो आज लाखों लोगों के खून पसीने की कमाई नहीं डूबी होती। सरकार का यह कदम सही है कि वक्त रहते ही ठोस कोशिश कर रही है।