प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। लाभुकों के नाम से फर्जी खाता खोलकर उसमें फंड ट्रांसफर कर लाखों रुपये उड़ा लिए गए। इस पूरे प्रकरण ने बैंक के माध्यम से लाभुकों के खाते में सीधे राशि ट्रांसफर करने वाली पुख्ता व्यवस्था पर भी सवाल उठा दिए हैं। फिलहाल जिन मामलों का खुलासा हुआ है वे लातेहार जिले के बरियातु प्रखंड, गढ़वा के धुरकी और गढ़वा सदर, पलामू के मनातु, लेस्लीगंज और हेरहंज प्रखंड से जुड़े हैं। इन जिलों के 221 लाभुक इस फर्जीवाड़े का शिकार हुए हैं। साफ्टवेयर में छेड़छाड़ कर पूरे प्रकरण को अंजाम दिया गया है। ग्रामीण विकास विभाग की जांच रिपोर्ट में इस मामले में प्रारंभिक तौर पर 60 से 70 लाख रुपये के गबन की जानकारी दी गई है। विस्तृत जांच के बाद पूरे मामले का खुलासा होगा। ग्रामीण विकास विभाग ने प्रथम दृष्टया इसे साइबर क्राइम का मामला माना है, जिसमें बैंक और प्रखंड कार्यालय की भूमिका संदिग्ध बताई है। राज्य व केंद्र सरकार की तमाम योजनाओं को बैंकों के माध्यम से संचालित किया जा रहा है। ताकि योजना का लाभ वास्तविक लाभुक तक पहुंचे और भ्रष्टाचार पर रोक लगाई जा सके। ऐसे में इस तरह का फर्जीवाड़ा बैंकों की मौजूदा कार्यशैली पर भी सवाल उठा रहा है।

राष्ट्रीय स्तर पर हाल के दिनों में बैंकों की साख गिरी है। अगर इस तरह की सरकारी योजनाओं में भी घपले-घोटाले होते रहे तो बैंकों से लोगों का विश्वास डिगेगा। प्रधानमंत्री आवास योजना सरकार की एक महत्वाकांक्षी योजना है। राज्य में इस योजना के तहत 2019 तक पांच लाख ग्रामीण परिवारों को आवास मुहैया कराने का लक्ष्य सरकार ने रखा है। योजना की गति सुस्त है, ऊपर से इस तरह के घोटाले सरकार की साख पर बट्टा लगा रहे हैं। योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही बरती गई है, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता। सीरीज में पासवर्ड आवंटित किए गए, जिन्हें कभी बदला ही नहीं गया। आम तौर पर पासवर्ड को निरंतर बदला जाता है। ग्रामीण विकास विभाग मामले की जांच सीबीआइ से कराने की अनुशंसा कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ने की कोशिश कर रहा है। जाहिर है यह मामला जितना दिख रहा है उससे कहीं अधिक बड़ा है। विभाग को भी इस बात का अंदेशा है इसीलिए मामला सीबीआइ को सुपुर्द कर पल्ला झाड़ने की कोशिश की जा रही है।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]