खाद्यान्न घोटाले में अभी कई परतें खुलनी बाकी हैं। सरकार को इस प्रकरण में उच्चस्तरीय जांच कराकर दोषियों को सामने लाना चाहिए।
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प्रदेश में अरबों रुपये के खाद्यान्न घोटाले में जिस तरह गरीबों के राशन के नाम पर लूट मचाई गई, वह बेहद चिंताजनक है। इस घटना के सामने आने के बाद खाद्य विभाग के अधिकारी व कर्मचारियों के साथ ही पूर्ववर्ती सरकार पर भी अंगुली उठ रही है। जिस तरह से इस घोटाले में हर स्तर पर सरकारी धन की बंदरबांट की गई, उससे विभाग की कार्यशैली ही सवालों के घेरे में है। भले ही सरकार ने इस प्रकरण में फौरी तौर पर कुछ अधिकारियों को नाप कर सख्ती दिखाई है लेकिन अभी इस घोटाले की कई परतें खुलनी शेष हैं। ऊधमसिंह नगर में हुआ खाद्यान्न घोटाला इतना बड़ा होगा, इसका अंदाजा स्वयं शायद सरकार को भी नहीं था। दरअसल, सरकार ने खाद्यान्न घोटाले के संबंध में मिली शिकायत पर जांच के लिए जिलाधिकारी की अध्यक्षता में एक जांच समिति गठित की थी। जांच रिपोर्ट में जो खुलासे हुए, उससे सरकार भी सकते में आ गई। जांच में रुद्रपुर राज्य भंडारण निगम के गोदाम में राज्य पोषित योजना के 2032 बोरे गायब पाए गए। यहां तक कि 3680 बोरे ऐसे थे, जिनमें अपठनीय दोहरी स्टेन्सिल की छाप मिली। खाद्यान्न की गुणवत्ता भी बेहद घटिया पाई गई। गोदामों से चावल बिना ट्रक नंबर अंकित किए ही बाहर भेजा गया। कई ट्रक तो गंतव्य तक पहुंचे ही नहीं। प्रदेश के बाहर से खरीदा हुआ चावल प्रदेश की मंडियों से खरीदा दिखाया गया। इससे सरकार को अरबों का नुकसान हुआ। जाहिर है कि बिना साठगांठ के यह काम नहीं हुआ होगा। जांच रिपोर्ट में तो यह बात भी सामने आई कि अधिकारियों को इस बात की पूरी जानकारी थी लेकिन राजनीतिक दबाव में वे पूरे घटनाक्रम से नजरें फेरे रहे। साफ है कि गरीबों के हिस्से का राशन डकारने में किसी ने कोई कोताही नहीं बरती। जांच रिपोर्ट सामने आने के बाद सरकार ने क्षेत्रीय खाद्य नियंत्रक का सेवा विस्तार समाप्त कर दिया और खासी बड़ी संख्या में अन्य कर्मचारी भी बदले गए हैं। बावजूद इसके अभी तक कई दोषी परदे के पीछे ही छिपे हुए हैं। सरकार भी मान रही है कि यह मामला इतना छोटा नहीं, जितना नजर आ रहा है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह मामले की उच्च स्तरीय जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराए। इस मामले में जल्द से जल्द एफआइआर कराई जाए ताकि जांच को तेजी मिल सके। दोषियों को कड़ा दंड देकर ही सरकार भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की अपनी नीति को आगे बढ़ा सकती है।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]