हरियाणा में भी भारतीय किसान यूनियन ने आंदोलन शुरू कर दिया है। मध्यप्रदेश के मंदसौर में हो रहे किसानों के आंदोलन को देखते हुए सरकार को इस तरफ समय से सचेत हो जाना चाहिए। ढाई वर्ष के दौरान दो बार जाट आरक्षण आंदोलन ङोल चुके प्रदेश को यदि फिर उग्र आंदोलन ङोलना पड़ा तो इससे प्रदेश को जबरदस्त झटका लगेगा। सौहार्द और भाईचारा तो त्रस्त होगा ही, विकास भी अवरुद्ध हो जाएगा। इसके साथ ही विवादित संत रामपाल के समर्थकों के साथ मिलकर अखिल भारतीय जाट आरक्षण आंदोलन संघर्ष समिति ने भी बड़े आंदोलन की चेतावनी दी है।

प्रदेश सरकार को अभी से इस संबंध में वार्ता करनी शुरू कर देनी चाहिए। पहली प्राथमिकता तो होनी चाहिए कि आंदोलन न हों। बातचीत से मसला हल हो जाए। बावजूद इसके आंदोलन से निपटने की रणनीति भी बना लेनी चाहिए। पुख्ता। आंदोलनकारियों को भी यह बात समझा देना चाहिए कि लोकतंत्र में विरोध का अधिकार है। अपनी मांग रखने का अधिकार है। यह भी समझ लेना चाहिए कि जनता में वे लोग भी आते हैं जो आंदोलनकारी नहीं हैं। उन्हें भी वे सारे अधिकार हैं, जो आंदोलनकारियों को हैं। उन्हें ट्रेनों में चलने का अधिकार है, लेकिन उनके इस अधिकार में बाधा डालने का अधिकार किसी के पास नहीं है।

यदि वह ऐसा करता है तो वह अपराध करता है। यह कितनी पीड़ादायक बात है कि लोग छोटी-छोटी बातों पर, कभी सड़क हादसे हो जाने पर, कभी किसी अस्पताल में चिकित्सक से खफा होकर तो कभी किसी आपराधिक वारदात के बाद सड़क पर जाम लगा देते हैं। सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाते हैं। उनके इस कृत्य से घंटों लोग फंसे रहते हैं। बीमारों को समय पर इलाज नहीं मिल पाता। छोटे-छोटे बच्चे भूख-प्यास से तड़पते हैं। इसलिए आंदोलनकारियों को यह सुनिश्चत कर लेना चाहिए कि उनके आंदोलन से आम जनता न त्रस्त हो। यदि आम जनता त्रस्त होगी तो वह उनके प्रति सहानुभूति क्यों रखेगी? इसलिए भाकियू नेताओं को ध्यान चाहिए कि हर हाल में शांति और व्यवस्था बनाए रखें। यह सुनिश्चित करें कि जनता को कोई कष्ट न हो। 

(स्थानीय संपादकीय हरियाणा)