राज्य के कई हिस्से इन दिनों बाढ़ की त्रासदी झेल रहे हैं। इस बार गंगा ने ज्यादा परेशानी खड़ी की। कुछ जगहों पर पानी उतरने लगा है तो कहीं अब भी उफान बना हुआ है। उम्मीद की जा रही है कि एक-दो दिन में हालात ठीक होने लगेंगे। बाढ़ के बीच राहत को लेकर भी कई हिस्से में त्राहिमाम की स्थिति बनी रही। हालांकि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अधिकारियों से वीडियो कांफ्रेंसिंग कर पहले ही राहत और बचाव कार्य को लेकर एहतियात बरतने का निर्देश दे दिया था, लेकिन स्थानीय स्तर पर चूक होती रही। खासकर बाढ़ के पानी में फंसे लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाने के संसाधन पर्याप्त नहीं दिखे। अब भी एक बड़ी आबादी अपनी छतों या पेड़ों का सहरा लेकर इस आपदा से दो चार हो रही है। भागलपुर के बगडेर बगीचा का उदाहरण दिया जा सकता है, जहां कई लोग नीचे दस फीस के बहाव से भयभीत आम के पेड़ों पर आशियाना बनाए हुए थे। हालांकि प्रशासन के संज्ञान में आने के बाद उन्हें पेड़ों से उतारकर सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया। लखीसराय में डूबने से सीआरपीएफ के जवान की मौत हो गई। उसका शव खोजने के लिए जिला प्रशासन के पास डोंगी के अलावा कोई दूसरा संसाधन नहीं था। हालांकि लगभग सत्रह घंटे बाद उसका शव बरामद किया जा सका। इसी जिले में संसाधन के अभाव में समय पर प्रसूता को अस्पताल नहीं पहुंचाए जाने की वजह से मौत हो गई। किसी तरह नाव की व्यवस्था कर परिजन अस्पताल पहुंचे, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। ऐसी कई घटनाएं बाढग़्र्रस्त क्षेत्रों में होती रहीं, जो बचाव की कमजोर तैयारी की ओर इशारा करती हैं। राहत शिविरों में भी शुरू-शुरू में उहापोह की स्थिति बनी रही। कुछ जगहों पर तो स्वयंसेवी संगठनों ने ही कमान संभाल रखी थी, लेकिन मुख्यमंत्री ने जब हालात का जायजा लेना शुरू किया तो राहत शिविरों में प्रशासनिक अधिकारी सक्रिय हो गए।

मुख्यमंत्री ने गुरुवार को पटना के मनेर से बख्तियारपुर तक के राहत शिविरों का अवलोकन किया। इस बीच उन्होंने बाढ़ पीडि़तों के लिए पकाए जा रहे भोजन की गुणवत्ता की स्वयं जांच की। उनका यह कदम दूसरे अन्य जगहों के राहत शिविरों की व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए काफी था। इसका असर भागलपुर के राहत शिविरों में भी देखने को मिला। जिले के प्रभारी मंत्री ने स्थिति को स्पष्ट करने के लिए सरकारी राहत शिविरों में राहत कार्य चला रहे स्वयंसेवी संगठनों को अलग रखने का निर्णय लिया। देर से ही सही प्रशासन की खिचड़ी की हांडी चढऩे के बाद पीडि़तों में बेहतरी की उम्मीद जगी। मंत्री ने यह भी कहा कि सरकार के पास पैसे की कमी नहीं, बाढ़ पीडि़तों को खाने-पीने से लेकर आवासन व कपड़े की ऐसी व्यवस्था की जाए, ताकि शिविर से लौटकर भी लोग याद रखें। यह सरकार के संकल्प का परिणाम है, जिसका लाभ पीडि़तों को मिला। उनके बीच कपड़े बांटे गए। खाने के लिए बर्तन भी वितरित किए गए। विशेषकर सरकारी शिविर में यह शिकायत दूर हुई कि उन्हें कोई देखने वाला नहीं है। फिलहाल समस्या शिविर तक न पहुंच पाने वाले बाढ़ पीडि़तों के साथ है। ऊंची जगहों, सड़कों या मकान की छतों पर फंसे लोगों तक भोजन, दवा, कपड़े और पेयजल पहुंचाने के लिए विशेष व्यवस्था करनी होगी। स्वयंसेवी संगठनों को भी ऐसे पीडि़तों की सेवा में आगे आना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय : बिहार ]