केंद्र सरकार यह दावा कर सकती है कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम में शामिल शहरों की हवा साफ हुई है, लेकिन एक तो यह सुधार मामूली है और दूसरे, कई शहरों में हवा की गुणवत्ता पहले से खराब भी हुई है। सरकार नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को लेकर इसलिए संतुष्ट नहीं हो सकती, क्योंकि दुनिया भर के प्रदूषित शहरों की सूची में देश के कई शहर शामिल हैं। गत दिवस ही स्विट्जरलैंड की संस्था आइक्यू एयर की एक रपट के अनुसार दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में भारत आठवें नंबर पर है।

वर्ल्ड एयर क्वालिटी नाम से जारी इस रपट में बताया गया है कि विश्व के सौ शीर्ष प्रदूषित शहरों में 65 भारत के हैं। इसी तरह प्रथम दस प्रदूषित शहरों की सूची में छह भारत के हैं। इनमें दिल्ली भी शामिल है, जहां प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एक साथ कई एजेंसियां सक्रिय रहती हैं। आखिर ऐसे में सरकार नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को लेकर किसी तरह की सफलता का दावा कैसे कर सकती है? इस प्रोग्राम के आंकड़े कुछ भी कहते हों, इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि वायु प्रदूषण से त्रस्त शहरों में हवा की गुणवत्ता वर्ष में कुछ ही दिन ठीक रहती है। अधिकतर समय उनमें हवा की गुणवत्ता का स्तर चिंताजनक ही रहता है।

यह सही समय है कि नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम की सिरे से समीक्षा की जाए। इसके साथ ही यह भी देखना होगा कि वायु प्रदूषण के कारण क्या हैं और उनका सही तरह निवारण हो रहा है या नहीं? इनमें से कुछ कारण तो सर्वविदित हैं, जैसे वाहनों का उत्सर्जन और सड़कों एवं निर्माण स्थलों से उड़ने वाली धूल। इसके अलावा अलग-अलग शहरों में कुछ स्थानीय कारण भी होते हैं, जैसे कहीं कचरा जलाने से उत्पन्न धुआं तो कहीं जेनरेटर का इस्तेमाल अथवा कोयले से चलने वाले बिजलीघर। इन कारणों का सही तरह निवारण नगर निकाय ही कर सकते हैं, लेकिन आम तौर पर उनके पास इसके लिए न तो कोई ठोस कार्ययोजना होती है और न ही प्रदूषण से लड़ने की इच्छाशक्ति। इच्छाशक्ति की कमी के लिए राज्य सरकारें उत्तरदायी हैं।

स्पष्ट है कि केंद्र सरकार को राज्य सरकारों पर इसके लिए दबाव बनाना होगा कि वे अपने नगर निकायों को वायु प्रदूषण से निपटने में सक्षम बनाएं। नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम को सफल बनाना है तो उसमें नगर निकायों की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है। यह भी समझा जाना चाहिए कि प्रदूषण से निपटने के लिए वर्ष भर सक्रियता दिखानी होती है, न कि तब जब वह खतरनाक रूप ले लेता है। वायु प्रदूषण से लड़ने में केवल इसलिए गंभीरता का परिचय नहीं दिया जाना चाहिए कि उससे देश की छवि पर बुरा असर पड़ता है, बल्कि इसलिए भी दिया जाना चाहिए, क्योंकि वह सेहत के लिए खतरनाक साबित हो रहा है।