ऐसा माना जा रहा था कि धान में नमी की मात्र कम होते ही खरीद शुरू हो जाएगी। खरीद की शुरुआत भी हुई, लेकिन बड़ी संख्या में किसान अब भी अपनी फसल को लेकर पैक्स और व्यापार मंडलों का चक्कर लगा रहे हैं। एक रिपोर्ट के अनुसार सवा लाख से अधिक किसान ऑनलाइन प्रक्रिया में उलङो हैं। उनके आवेदनों का सत्यापन होना शेष है। जब तक सत्यापन नहीं हो जाता न तो पैक्स और न ही व्यापार मंडल उनकी फसल खरीद सकते हैं। ज्यादा समस्या अधिप्राप्ति की प्रक्रिया में पहली बार शामिल किए गए भूमिहीन किसानों को लेकर है।

बैंकों द्वारा आंकड़ों को अपलोड न किए जाने से विभाग को भी यह पता नहीं चल पा रहा कि किसानों को कितना भुगतान किया गया और कितना बकाया है। निबंधित किसानों के अनुपात में खरीद न हो पाने की वजह से खरीदारी की मात्र भी संतोषजनक हालत में नहीं है। हालांकि टास्क फोर्स को खरीद की प्रक्रिया में लगाने का निर्देश दिया गया है, लेकिन देर इतनी होती जा रही है कि जरूरतमंद किसान राज्य सरकार द्वारा तय समर्थन मूल्य से प्रति क्विंटल तीन से चौर सौ रुपये कम कीमत पर दूसरी जगह अपनी फसल बेचने को मजबूर हो रहे हैं।

बिचौलियों से खरीद की प्रक्रिया को अप्रभावित रखने के लिए सारे उपाय किए गए हैं, लेकिन कुछ स्तरों पर शिथिलता की वजह से ऐसी नौबत आ जाती है कि जरूरतमंद किसान औने- पौने दाम में फसल बेचने लगते हैं। खाद्य एवं उपभोक्ता संरक्षण मंत्री के अनुसार किसानों के ऑनलाइन निबंधन और और चावल मिलों के भौतिक सत्यापन के लिए सभी जिलों को पूर्व में भी विस्तृत निर्देश दिया गया था। निबंधन और मिलों के सत्यापन के बाद ही उन्हें क्रय केंद्रों से जोड़ा जाएगा। इस निर्देश के आलोक में हुए कार्य की गहन समीक्षा की जरूरत है। सभी जिलाधिकारियों को भी पत्र लिखकर यह कहा गया था कि हर हफ्ते मीटिंग कर अगले तीन महीने तक होने वाली धान क्रय की समीक्षा की जाए। इतने उपायों के बाद भी किसानों की परेशानी दूर होने में देर हो तो तैयारी के स्तर की जांच होनी चाहिए।

(स्थानीय संपादकीय बिहार)