आखिर वही हुआ जिसका डर था। पूरी सर्दी बादल बहुत कंजूसी से बरसे लेकिन अब जाते-जाते ऐसी झड़ी लगी कि राहत से ज्यादा लोग, खासकर किसान आफत से घिर गए। फागुन में ऐसी बारिश व ओलावृष्टि जारी रही तो पंजाब भर में फसलों को काफी नुकसान होना तय है। मौसम विशेषज्ञों की मानें तो अभी एक-दो दिन यही हाल रहेगा। हालांकि काफी समय से अच्छी बारिश के लिए तरस रही धरती तृप्त होगी लेकिन किसान की कमर फिर टूट सकती है। कृषि प्रधान प्रदेश के लगभग हर जिले से जो समाचार मिल रहे हैैं वह चिंता उत्पन्न करते हैैं। मालवा, माझा, दोआबा- राज्य की तीनों पट्टिïयों में गेहूं की फसल खेतों में बिछ गई है। अगर और बारिश हुई तो नुकसान हो सकता है। सरसों की फसल भी कुछ प्रभावित हुई है और तेज हवा से कई जगह आम के बौर भी झड़ गए हैैं। मालवा की बात करें तो गत एक साल में यह किसान पर दूसरी बार कहर होगा। पहले नरमे पर सफेद मक्खी का ऐसा हमला हुआ कि राज्य के किसानों को 1750 करोड़ रुपये का नुकसान झेलना पड़ा। अब कितना नुकसान होगा, यह तो तभी पता चलेगा जब इसकी सही ढंग से गिरदावरी या आकलन हो। कहीं ऐसा न हो कि पहले से कर्ज के दलदल में फंसे छोटे किसान और बुरी हालत में हो जाएं। पिछले कुछ वर्षों से राज्य में किसानों की खुदकशी के मामले भी ज्यादा सामने आ रहे हैैं। ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न नहीं होनी चाहिए। हालांकि सरकार ने फसल बीमा योजना इत्यादि की घोषणा की है लेकिन सच तो यह है कि छोटे किसानों को ऐसे नुकसान के समय इन योजनाओं का खास फायदा नहीं होता। ऐसी योजनाओं के प्रति जागरूकता का भी अभाव नजर आता है। प्रकृति पर किसी का वश नहीं लेकिन इससे होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए तो कारगर कदम उठाए ही जा सकते हैैं और यह जिम्मेदारी सरकार की बनती है। वैसे पंजाब सरकार किसानों की हितैषी रही है और इसका दम भी भरती रही है। इसलिए यह उम्मीद की जाती है कि अगर नुकसान ज्यादा होता है तो सरकार किसान की हर संभव मदद करने में देर नहीं करेगी। नुकसान का आकलन जल्द व सही होना चाहिए। इस मामले को बेहद गंभीरता से लेना होगा।

[स्थानीय संपादकीय: पंजाब]