निजी स्कूलों में फीस के नाम पर हो रही लूट से लगभग हर अभिभावक परेशान हैं। निजी स्कूलों के प्रबंधकों द्वारा हर साल बच्चों से भारी-भरकम बढ़ोतरी के साथ फीस वसूली जा रही है। विद्या के मंदिर वर्तमान में शिक्षा की दुकानों में तबदील हो गए हैं। अभी हाल ही में ऐसी ही शिक्षा की दुकानों पर शिकंजा कसने के लिए चंडीगढ़ के यूटी प्रशासन ने मनमानी फीस वृद्धि पर एक अच्छा फैसला लिया है जिसपर केंद्रीय गृह सचिव ने भी अपनी मुहर लगा दी है। केंद्र शासित प्रदेश के प्रशासन ने अधिसूचना जारी की है कि कोई भी निजी संस्थान आठ प्रतिशत से ज्यादा फीस वृद्धि नहीं करेगा और शैक्षणिक सत्र के मध्य में तो फीस कतई बढ़ा ही नहीं सकेगा। फीस जमा होने पर सारे खर्च बताने होंगे और कुछ भी रसीद में ‘हिडन ’ होने पर स्कूल प्रबंधकों के खिलाफ कार्रवाई होगी। चंडीगढ़ प्रशासन ने अपनी अधिसूचना में पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी शिकायत के सही पाए जाने पर दो बार जुर्माना जो कि एक लाख से शुरू होता है स्कूल से वसूला जाएगा। यदि स्कूल प्रबंधन फिर भी अपनी मनमानी से बाज नहीं आता है तो उस स्कूल की तीसरी शिकायत पर मान्यता ही रद कर दी जाएगी।

पंजाब सरकार को भी राज्य में निजी स्कूलों की मनमानी फीस वृद्धि के खिलाफ ऐसा ही सख्त कदम उठाना चाहिए। पंजाब में तो शिक्षा को कुछ लोगों ने धंधा ही बना दिया है। हर साल बच्चों के अभिभावक फीस वृद्धि को लेकर किसी न किसी स्कूल के बाहर धरना देते हैं लेकिन सरकार निजी स्कूल प्रबंधकों पर कोई कार्रवाई करने के बजाए हर बार कार्रवाई का आश्वासन देकर मामले को ठंडे बस्ते में डाल देती है। पंजाब सरकार को भी चाहिए कि वह चंडीगढ़ प्रशासन की तर्ज पर निजी स्कूल प्रबंधकों से उनकी कमाई का सारा हिसाब-किताब पूछे। यह भी पूछे कि वह फीस तो भारी-भरकम वसूल रहे हैं परंतु अध्यापकों को वेतन के रूप में क्या दे रहे हैं? शिक्षा दान है न कि दुकान, शिक्षा के नाम पर धंधेबाजी बंद होनी चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]