पंजाब में हर साल जल स्तर का ढाई फीट तक नीचे जाना चिंता की बात है। प्रदेश में सबसे ज्यादा भूजल का दोहन धान की खेती के लिए किया जाता है। ऐसे में सरकार का यह फैसला उचित ही है कि धान की रोपाई को पांच दिन आगे खिसका दिया जाए। अब नए आदेश के मुताबिक किसान बीस मई से पहले पनीरी नहीं लगा सकेंगे और इसी तरह बीस जून से पहले उसकी रोपाई नहीं कर सकेंगे। कुछ किसान संगठनों ने इस फैसले का विरोध शुरू कर दिया है जोकि उचित नहीं है। सरकार ने यह फैसला पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से की गई स्टडी के मद्देनजर किया है। दरअसल स्टडी में ही यह बात सामने आई है कि हर वर्ष प्रदेश में जल स्तर ढाई फीट नीचे जा रहा है। किसानों को यह सोचना चाहिए कि यदि ऐसा करने से पानी की बचत होती है तो इसमें हर्ज ही क्या है। प्रदेश के बेहतर भविष्य के लिए पानी को सहेजना बहुत जरूरी है।

फसल की रोपाई पांच दिन देरी से करने से यदि ढाई करोड़ लीटर पानी की बचत हो सकती है तो ऐसा किया ही जाना चाहिए। रोपाई थोड़ी देरी से करने से बेशक फसल की पैदावार में कुछ कमी हो जाए, लेकिन पानी की बचत उससे ज्यादा जरूरी है। सरकार की ओर से फसली चक्र बदलने को लेकर काफी प्रयास किए गए लेकिन इसका बहुत ज्यादा असर किसानों पर नहीं हुआ है। किसान अब भी धान व गेहूं को ही प्राथमिकता दे रहे हैं। इसके लिए किसानों को ही पूरी तरह जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है क्योंकि नकदी फसलों को लेकर उनमें भरोसा नहीं पैदा हो पा रहा है। सरकार को इस दिशा में और प्रयास करने की जरूरत है। इसके अलावा सरकार को यह भी देखना होगा कि पनीरी लगाने व उसकी रोपाई को लेकर जो नए आदेश दिए गए हैं उसका पूरी तरह पालन हो। कई बार अधिकारियों की लापरवाही के कारण ऐसा नहीं हो पाता है। किसानों को भी आने वाली पीढ़ियों व पंजाब के भविष्य को ध्यान में रखते हुए सरकार के आदेश पर अमल करना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]