केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत को कर्नाटक का राज्यपाल बनाए जाने से मोदी मंत्रिमंडल में विस्तार की संभावनाएं और प्रबल हो गई हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल में विस्तार अवश्यंभावी होने के कुछ और भी कारण हैं। एक तो मोदी सरकार के कार्यकाल के दो वर्ष पूरे हो चुके हैं और दूसरे, शिवसेना एवं अकाली दल के मंत्री मंत्रिमंडल से बाहर हो चुके हैं। इसके अलावा रामविलास पासवान के निधन से भी मंत्री पद रिक्त है। यह भी ध्यान रहे कि अगले वर्ष पांच राज्यों में चुनाव हैं और इस दृष्टि से भी कुछ चेहरों को मंत्रिमंडल में स्थान दिया जाना स्वाभाविक है। एक अन्य तथ्य यह भी है कि इस मंत्रिमंडल में कई ऐसे मंत्री हैं, जिनके पास एक से अधिक मंत्रालय हैं। कुछ मंत्री तो ऐसे हैं जिनके पास चार-चार मंत्रालय हैं। स्पष्ट है कि यह आदर्श स्थिति नहीं। एक-दो से अधिक मंत्रालयों को संभाल रहे मंत्रियों के काम का बोझ केवल इसलिए कम नहीं किया जाना चाहिए कि वह अपना काम सही तरह से कर सकें, बल्कि इसलिए भी कम किया जाना चाहिए, क्योंकि शेष तीन साल के कार्यकाल में मोदी सरकार के उस एजेंडे को पूरा करने की चुनौती सामने आ खड़ी हुई है, जो कोविड महामारी के कारण बाधित हुआ है। नि:संदेह कम समय में अधिक काम तभी हो सकता है, जब केंद्रीय मंत्री अपने काम पर ज्यादा से ज्यादा ध्यान दे सकेंगे।

मोदी सरकार के मामले में यह कहना और कठिन है कि मंत्रिमंडल विस्तार में कौन-कौन लोग मंत्री बनेंगे, लेकिन यह मानकर चला जाना चाहिए कि ज्योतिरादित्य सिंधिया और सर्बानंद सोनोवाल प्रमुख दावेदार हैं। इसी तरह जनता दल यू और अन्य सहयोगी दलों के नेता भी मंत्रिमंडल में अपना स्थान बना सकते हैं। वैसे तो मंत्रिमंडल में अपने सहयोगियों का चुनाव करना प्रधानमंत्री का विशेषाधिकार है, लेकिन उनके लिए क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरणों की अनदेखी करना मुश्किल है। भारत सरीखे बड़ी आबादी और विविधता वाले देश में प्रधानमंत्री के लिए यह आवश्यक सा हो जाता है कि वह समाज के सभी वर्गो और क्षेत्रों के नेताओं को अपने मंत्रिमंडल में स्थान दे। बावजूद इसके अपेक्षा यही है कि एक ओर जहां बेहतर काम करने वाले मंत्रियों को पदोन्नति मिले, वहीं नए मंत्रियों के चुनाव में योग्यता को सर्वोच्च महत्व प्रदान किया जाए। यदि क्षेत्रीय और सामाजिक समीकरणों को पूरा करने के फेर में योग्यता की अनदेखी होगी तो फिर उसका असर सरकार के कामकाज पर पड़ेगा। भले ही राजनीति से इतर क्षेत्रों के लोगों को मंत्रिमंडल में स्थान देना पड़े, कोशिश यही होनी चाहिए कि ज्यादा से ज्यादा दक्ष लोगों को मंत्रिमंडल में स्थान मिले-ठीक वैसे ही जैसे जयशंकर और हरदीप पुरी को मिला था।