यह सराहनीय है कि कुंभ को लेकर प्रधानमंत्री की अपील का असर हुआ और सबसे बड़े अखाड़ों में से एक जूना अखाड़ा की ओर से कुंभ के विधिवत समापन की घोषणा कर दी गई। निरंजनी और आनंद अखाड़ा ने तो प्रधानमत्री की ओर से कुंभ को प्रतीकात्मक तौर पर मनाने की अपील के पहले ही ऐसा करने की घोषणा कर दी थी। इसके माध्यम से उन्होंने राह दिखाने का जो काम किया, उसके लिए उन्हें साधुवाद। धार्मिक संगठनों से ऐसी ही अपेक्षा की जाती है। उनका एक बड़ा दायित्व समाज और देश को राह दिखाना ही होता है। यह स्वागतयोग्य है कि जूना अखाड़े के साथ अन्य अखाड़े भी समय से पहले कुंभ का समापन करने अथवा उसे प्रतीकात्मक तौर पर मनाने के कदम उठा रहे हैं। यह इसलिए आवश्यक था, क्योंकि कुंभ जाने वाले कई श्रद्धालुओं के साथ कुछ संत भी कोरोना संक्रमण की चपेट में आ चुके हैं। कुछ की तो मौत भी हो गई है। इस स्थिति में ऐसे किसी विचार के लिए कोई स्थान नहीं हो सकता कि कैसी भी परिस्थिति हो, धार्मिक रीति-रिवाज नहीं छोड़े जा सकते। जीवन संचालन परिस्थितियों के हिसाब से ही किया जाना चाहिए, क्योंकि कुछ परिस्थितियां ऐसी होती हैं, जिनसे टकराने से कोई लाभ नहीं होता। जब कोई बीमारी महामारी का रूप ले ले तो जीवन रक्षा के लिए जो भी करना पड़े, वह आगे बढ़कर किया जाना चाहिए-ठीक वैसे ही जैसे विभिन्न अखाड़ों ने किया।

कोरोना वायरस से उपजी महामारी ने जो संकट खड़ा कर दिया है, उसका सामना करना और इस क्रम में जीवन रक्षा के उपायों को पहली प्राथमिकता देना आज के समय की सबसे बड़ी मांग है। इस मांग की पूर्ति कुंभ में जुटे अखाड़ों के साथ-साथ अन्य सभी धार्मिक-सांस्कृतिक एवं सामाजिक संगठनों को भी करनी चाहिए, वे चाहे जिस मत-मजहब, पंथ-समुदाय से जुड़े हों। इसकी जरूरत इसलिए आ गई है, क्योंकि पर्व एवं त्योहारों का एक सिलसिला कायम होता दिख रहा है। इन दिनों एक ओर जहां नवरात्र के चलते देश भर में विभिन्न धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजन हो रहे हैं, वहीं रमजान के कारण भी। आगे ईद के साथ अन्य पर्व भी हैं। इन सबमें ऐसा कोई काम नहीं किया जाना चाहिए, जिससे भीड़ एकत्रित हो और कोरोना संक्रमण के खिलाफ लड़ी जा रही लड़ाई में मुश्किलें पेश आएं। यदि यह स्मरण रखा जाए तो जो अपेक्षित है, उसकी पूर्ति कहीं आसानी से होगी कि कोई भी मत-मजहब हो, उसका मूल है मानव कल्याण। अब जब धार्मिक-सांस्कृतिक संगठन अपने हिस्से की जिम्मेदारी पूरी करते दिख रहे हैं, तब फिर यह भी आवश्यक हो जाता है कि चुनावों में व्यस्त विभिन्न राजनीतिक दल भी ऐसा ही करें।