बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने के साथ ही चार धाम यात्रा की औपचारिक शुरुआत हो चुकी है। इस बार सबसे अहम यह है कि यात्रा को लेकर श्रद्धालुओं का उत्साह अद्भुत नजर आ रहा है। रविवार को केदारनाथ धाम के कपाट खुले तो पहले ही दिन रिकार्ड 25 हजार से ज्यादा श्रद्धालु केदारनाथ पहुंचे। भीड़ इतनी अधिक थी कि लोगों को पड़ावों पर रोकना पड़ा। अकेले केदारनाथ के लिए 25 अप्रैल तक एक लाख श्रद्धालु ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करा चुके थे। गंगोत्री और यमुनोत्री धाम में लगी कतारें यात्रियों के उत्साह की गवाही दे रही हैं। सरकार को यह तो उम्मीद थी कि इस बार यात्रियों की तादाद पहले से ज्यादा रहेगी, लेकिन इतनी ज्यादा रहेगी, यह अनुमान शायद ही रहा हो। आपदा के बाद उमड़ रहे सैलाब से स्थानीय व्यापारियों के चेहरे पर मुस्कान तैर रही है। जाहिर है कि वर्ष 2013 की आपदा में मिले जख्मों की टीस भले ही सालती रहे, लेकिन अब यह बीते वक्त की बात हो चुकी है। बावजूद इसके उत्साह और उल्लास के इस माहौल के बीच सरकार, शासन और प्रशासन की जिम्मेदारी भी बढ़ गई है। हालांकि की प्रशासन दावा कर रहा है कि यात्र के लिए पुख्ता इंतजाम किए गए हैं, लेकिन यह सवाल बरकरार है कि यदि यात्रियों की संख्या में अप्रत्याशित इजाफा होता है तो क्या उसके लिए भी कोई रणनीति बनाई गई है।

मसलन केदारनाथ में यात्रियों ने अव्यवस्थाओं की शिकायत की है। यह सही है कि बड़े आयोजनों में छोटी-छोटी खामियों को दूर करने में समय लगता है, लेकिन यात्री उत्तराखंड पर भरोसा कर ही यहां पहुंचता है और उसके भरोसे पर खरा उतरना हमारा दायित्व भी है। दूसरी बड़ी चुनौती मौसम है। अप्रैल में मौसम ने जिस तरह के तेवर दिखाए हैं, इसे आने वाले समय के संकेत के तौर पर देखा जाना चाहिए। बीते दिनों गंगोत्री हाईवे पर आए मलबे में तीन लोगों की जान चली गई। बारिश के दौरान हुए भूस्खलन में इसे सामान्य घटना की तरह नहीं लिया जाना चाहिए। यह नहीं भूलना चाहिए की चार धाम यात्र मार्ग पर देश ही नहीं, दुनिया की निगाहें भी रहती हैं। यमुनोत्री मार्ग भी भूस्खलन की दृष्टि से संवेदनशील बना हुआ है। इसके अलावा बदरीनाथ हाईवे पर चिह्नित भूस्खलन क्षेत्रों का ट्रीटमेंट अभी दूर की कौड़ी लग रही है। बरसात आने में अभी दो माह से ज्यादा का समय शेष है। सरकार के पास पर्याप्त समय है कि इससे पहले कुछ वैकल्पिक इंतजाम कर लिए जाएं। दरअसल, सरकार के साथ ही आमजन की भी जिम्मेदारी है कि यात्रियों का उत्साह बना रहे और वे सुखद संदेश लेकर ही यहां से विदा हों।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड ]