संध्याकाल सदैव आत्मचिंतन और संयम की मांग करता है, फिर चाहे वह ऋतु का हो, वय का, दिन-रात या पुराने-नए साल का। इस चिंतन से ही नवागत के स्वागत की सकारात्मक ऊर्जा मिलती है। निजी जीवन में हम यह चिंतन करते ही हैं जिनसे नये साल के संकल्प जन्म लेते हैं लेकिन शहर व प्रदेश के स्तर पर भी इसकी जरूरत है। अपने प्रदेश में साल 2015 कई क्षेत्रों में घना अंधकार छोड़ गया, तो कई क्षेत्रों में इंद्रधनुषी रंग भरकर लाया।

गाजियाबाद में मेट्रो का विस्तार हुआ तो नोएडा, ग्रेटर नोएडा में भी परियोजनाओं को गति मिली। लखनऊ में मेट्रो धरातल पर आकार लेने लगी तो मेट्रो का सपना कानपुर, वाराणसी, आगरा और मेरठ तक पहुंच गया। आगरा-लखनऊ एक्सप्रेसवे का काम भी सतह पर दिखने लगा तो आगरा एक्सप्रेस वे का हवाई पट्टी की तरह उपयोग कर वायुसेना के युद्धक विमानों ने उड़ान भरी। दिल्ली-आगरा रूट पर हाईस्पीड ट्रेनों का ट्रायल रन कराया गया। कानून-व्यवस्था की चुनौती 2015 में भी मुंह बाये खड़ी रही। सीसीटीवी का संजाल कहीं से कारगर साबित नहीं हुआ, इस हकीकत को स्वीकारते हुए प्रदेशस्तरीय हाईटेक कंट्रोल की बुनियाद डाली गई। इस साल हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ का नया पता कैसरबाग से गोमतीनगर तैयार हुआ है। सरकारी अस्पतालों में सभी जांचें निशुल्क कर दी गईं, हालांकि संसाधनों का टोटा दूर नहीं हुआ। सार्वजनिक और निजी सहभागिता से नए अस्पताल खोलने, नए मेडिकल कॉलेजों को मंजूरी देने के साथ 36 जिलों में 170 मोबाइल मेडिकल यूनिटें खोलने का प्रस्ताव भी सामने आया है। आर्थिक क्षेत्र में प्रवासी यूपी सम्मेलन की योजना से उम्मीद जगी।1बेरोजगारों को यह साल गुड़ दिखाकर ढेला मार गया। 2011 में शुरू हुई बेसिक शिक्षकों की नियुक्तियां हों या शिक्षामित्रों का समायोजन, सिरे तक नहीं चढ़ सका। भर्तियों में व्यवधान बेरोजगारों को चिढ़ाता रहा और राहत कुछ तब मिली जब हाईकोर्ट ने भर्तियां कराने वाले उप्र लोक सेवा आयोग एवं अन्य संवैधानिक संस्थाओं में नियम विरुद्ध हुई नियुक्तियों को रद कर दिया।

{स्थानीय संपादकीय :उत्तर प्रदेश}