बिगड़ते पर्यावरण को संभालना कितनी बड़ी चुनौती है, इसका पता विश्व पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से जारी एक वीडियो संदेश से चलता है। इस संदेश के जरिये उन्होंने स्पष्ट किया कि पर्यावरण के मामले में विकसित देशों का रवैया किस तरह समस्या को बढ़ाने वाला है। यह अच्छा है कि प्रधानमंत्री ने यह कहने में संकोच नहीं किया कि पर्यावरण के मामले में कुछ विकसित देश आज भी गलत नीतियों पर चल रहे हैं।

वास्तव में इससे भी खराब बात यह है कि वे अपनी जिम्मेदारी समझने के लिए तैयार नहीं। इसका एक उदाहरण है अमेरिकी नेता निक्की हेली का यह निष्कर्ष कि चीन के साथ भारत सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले देशों में शामिल है। उन्होंने केवल गलतबयानी ही नहीं की, बल्कि बड़ी सफाई से प्रदूषण फैलाने के मामले में अमेरिका और यूरोप की भूमिका की अनदेखी भी कर दी।

इसमें कोई दो राय नहीं कि विकसित देशों ने ही पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है। वे इस कटु सत्य से अवगत भी हैं, लेकिन उनका रवैया ऐसा है, मानो पर्यावरण को खराब करने का काम विकासशील एवं निर्धन देश कर रहे हैं और अपने विकास को भूलकर उसे ठीक करने की जिम्मेदारी भी उनकी ही है। वास्तव में उनके इसी रवैये के कारण ही उन सहमतियों पर सही तरह आगे नहीं बढ़ा जा पा रहा है, जो धरती को जलवायु परिवर्तन से बचाने के लिए बनती रही हैं। ऐसे में यह आवश्यक है कि भारत सरीखे देश विकसित देशों को बार-बार यह याद दिलाएं कि पर्यावरण के मामले में सबसे अधिक जिम्मेदारी उनकी ही है।

प्रधानमंत्री ने पर्यावरण के साथ न्याय की मांग को लेकर अपनी प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए यह भी कहा कि भारत सिंगल यूज प्लास्टिक से छुटकारा पाने के लिए चार-पांच वर्षों से काम कर रहा है। निःसंदेह प्लास्टिक के बढ़ते चलन और विशेष रूप से प्लास्टिक कचरे को लेकर जागरूकता बढ़ी है, लेकिन अभी इस दिशा में बहुत काम करने की जरूरत है। इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग से बचने के लिए जो कदम उठाए गए हैं, वे पर्याप्त और प्रभावी नहीं सिद्ध हो पा रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण यही है कि सिंगल यूज प्लास्टिक को प्रतिबंधित करने के बावजूद उसका इस्तेमाल कम नहीं हो रहा है।

जब तक सिंगल यूज प्लास्टिक वाले उत्पादों का निर्माण होता रहेगा, तब तक उनकी बिक्री को रोकना संभव नहीं। सिंगल यूज प्लास्टिक पर्यावरण के लिए एक गंभीर चुनौती बन गया है। प्रतिदिन लाखों टन सिंगल यूज प्लास्टिक कचरे के रूप में सामने आ रहा है। इसमें एक बड़ा हिस्सा नदी, नालों, झीलों आदि में डाला जा रहा है। भारत को एक ओर जहां सिंगल यूज प्लास्टिक के चलन को सख्ती से कम करना होगा, वहीं दूसरी ओर उसके रिसाइकिल के काम को भी प्राथमिकता देनी होगी।