बुंदेलखंड की बदनसीबी के बादल धीरे-धीरे छंटने लगे हैं। कुछ वर्षो पहले तक अकाल और विकास के बजाय पिछड़ापन जैसे शब्द इसके मानो पर्याय बन चुके थे, लेकिन पहले केंद्र की मोदी सरकार ने और अब प्रदेश में आई योगी सरकार ने जब से ध्यान इधर केंद्रित किया है, यहां की तस्वीर बदलने लगी है। केंद्र और प्रदेश के समन्वित कदम की ताजातरीन पहल है डिफेंस कॉरीडोर परियोजना। इस परियोजना को लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने दो दिन पहले झांसी में केंद्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बैठक की थी। डिफेंस कॉरीडोर के तहत छह क्लस्टर विकसित किए जाएंगे, जो अलीगढ़, आगरा, झांसी, चित्रकूट, कानपुर और लखनऊ में प्रस्तावित हैं। इन छह जिलों में कुल 3000 हेक्टेयर भूमि चिह्न्ति कर परियोजना के लिए कंसल्टेंट नियुक्त किया जा चुका है।

डिफेंस कॉरीडोर में शुरुआत में 20 हजार करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित है। इसके जरिये तीन लाख लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलने की संभावना है। अनावृष्टि की मार ङोलता बुंदेलखंड लगभग टूट चुका है। न खेती-किसानी बची है और न ही रोजगार। विकास ने तो जैसे स्थायी रूप से इस क्षेत्र से मुंह मोड़ लिया है। यहां के अधिकांश लोगों को रोजी-रोटी के लिए साल का अधिकतर समय अन्य क्षेत्रों में ही बिताना पड़ता है। इस पीड़ा पर केंद्र और प्रदेश की मौजूदा सरकारों ने मरहम लगाने का काम शुरू कर दिया है। इसी क्षेत्र में ऐसे इंतजाम किए जा रहे हैं, ताकि लोगों को रोजी-रोटी के लिए अपना घर छोड़कर खानाबदोशों की तरह भटकना न पड़े। डिफेंस कॉरीडोर भी ऐसे ही उपायों में से एक है। एक तरफ यह देश की तमाम रक्षा जरूरतों को पूरा करेगा तो दूसरी ओर बुंदेलखंड में विकास और रोजगार की बारिश भी करेगा। बहरहाल, केंद्र और प्रदेश की सरकारों ने बुंदेलियों को बड़े-बड़े सपने दिखाने शुरू कर तो दिए हैं, पर इसे तभी सार्थक माना जाएगा, जब ठोस रूप में धरातल पर कुछ दिखाई देने लगेगा, उम्मीद की जानी चाहिए कि राज्य सरकार की ताजा पहल के बाद बदनसीब बुंदेलखंड के दिन तेजी से फिरेंगे और कुछ वर्षों में सृजित होने वाले रोजगार के अवसर यहां से पलायन रोकेंगे।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]