उत्तराखंड में अब धीरे-धीरे विधानसभा चुनाव की आहट महसूस की जाने लगी है। हालांकि अभी चुनाव में लगभग सालभर का वक्त शेष है लेकिन मुख्यमंत्री हरीश रावत पूरी तरह इस दिशा में सक्रिय हो गए हैं। उनके ताजा कदम से तो इसी तरह के संकेत पुष्ट हो रहे हैं। जनता से सीधा संवाद कायम करने के लिए तरह-तरह के कदम उठा चुके मुख्यमंत्री ने अब फैसला किया है कि वह अपनी सरकार के कामकाज का फीडबैक सीधे आम जनता से लेंगे।

दरअसल, बतौर मुख्यमंत्री हरीश रावत आगामी दो फरवरी को अपना दो साल का कार्यकाल पूर्ण करने जा रहे हैं, लिहाजा एक तरह से वह विधानसभा चुनाव की तैयारियों के क्रम में इस बात का आकलन करने का फैसला कर चुके हैं कि जनता उनकी सरकार के कामकाज से किस हद तक संतुष्ट है और कहां-कहां सुधार की गुंजाइश बनी हुई है। इस कड़ी में मुख्यमंत्री का जनता से सीधा संवाद कायम करने के उद्देश्य से छह चरणों की जनसंपर्क यात्र की रूपरेखा तैयार की गई है। इसकी शुरुआत मुख्यमंत्री के अपने विधानसभा क्षेत्र धारचूला से की जाएगी, जो राज्य का सीमांत इलाका भी है। साफ है कि सुविचारित रणनीति के तहत मुख्यमंत्री विधानसभा चुनाव से पहले व्यापक जनसंपर्क यात्र के जरिए आम जनता तक संपर्क करेंगे। साथ ही इस यात्र के दौरान राज्य के प्रत्येक हिस्से में पहुंचकर लोगों की समस्याओं और शिकायतों को जानने के साथ ही मौके पर उनका निराकरण भी किया जाएगा।

गौरतलब है कि इस प्रस्तावित कार्यक्रम से पहले ही पार्टी संगठन के जरिए मुख्यमंत्री अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से विधानसभावार रूबरू होने का कार्यक्रम भी आरंभ कर चुके हैं। इन महत्वपूर्ण कार्यक्रमों के अलावा सरकार जिस तरह मुख्यमंत्री की घोषणाओं के क्रियान्वयन को लेकर गंभीरता प्रदर्शित कर रही है, वह भी चुनावी तैयारियों का ही हिस्सा माना जा सकता है। अपने अब तक, यानी लगभग बाइस महीने के कार्यकाल में मुख्यमंत्री विभिन्न विभागों और राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों से संबंधित साढ़े तीन हजार से ज्यादा घोषणाएं कर चुके हैं। अब इतनी अधिक संख्या में विकास कार्यो से संबंधित घोषणाएं की गई हैं तो चुनाव पूर्व उन्हें पूरा किया जाना भी जरूरी है। राज्य के कमजोर वित्तीय हालात किसी से छिपे नहीं हैं। राज्य को आय के नए संसाधन तलाशने की मशक्कत करनी पड़ रही है और इस कड़ी में राज्य की जनता पर कई तरह के करों का बोझ पड़ा है। यह राजनैतिक दूरदर्शिता का उदाहरण ही तो है कि यह सब विधानसभा चुनाव से एक साल पहले कर लिया गया, ताकि आम जनता में इससे होने वाली प्रतिक्रिया को समय रहते संभाल लिया जाए। जिस तरह से मुख्यमंत्री तेजी से चुनावी मोड में नजर आ रहे हैं, उससे साफ है कि पर्याप्त वक्त होने के बावजूद वह अपनी रणनीति को अमलीजामा पहनाने में कोई ढिलाई नहीं बरतना चाहते।

{स्थानीय संपादकीय: उत्तराखंड}