इस पर हैरानी नहीं कि संसद का शीतकालीन सत्र तय समय से पहले ही समाप्त हो गया। विपक्ष ने जैसा अड़ियल रवैया अपना रखा था, उसे देखते हुए इसकी ही आशंका थी। जहां शीतकालीन सत्र को एक दिन पहले समाप्त करना पड़ा, वहीं पिछले सत्र यानी मानसून सत्र को दो दिन पहले खत्म करना पड़ा था। तब ऐसा इसलिए करना पड़ा था, क्योंकि राज्यसभा में 12 विपक्षी सदस्य अशोभनीय हरकत पर उतर आए थे। उन्होंने सभापति के सामने की मेजों पर चढ़कर न केवल नारेबाजी की थी, बल्कि कागज भी फाड़े थे। इसके अलावा उन्होंने सुरक्षा कर्मियों से धक्का-मुक्की भी की थी। इसी अशोभनीय हरकत के लिए उन्हें मौजूदा सत्र में निलंबित किया गया।

निलंबित सांसदों के साथ विपक्षी दलों ने इस कार्रवाई को विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश के रूप में प्रचारित किया। चूंकि यह एक हास्यास्पद कोशिश थी इसलिए यह दुष्प्रचार भोथरा ही साबित हुआ कि विपक्ष को अपनी बात कहने से रोका जा रहा है। वास्तव में यह दुष्प्रचार न केवल सदन में किए गए अमर्यादित व्यवहार पर पर्दा डालने की चेष्टा थी, बल्कि यह माहौल बनाने की भी कि विरोध के नाम पर विपक्ष को सदन में हुड़दंग करने का भी अधिकार मिलना चाहिए।

यह अच्छा हुआ कि सत्तापक्ष विपक्ष के अनुचित दबाव के आगे नहीं झुका और अपने इस रवैये पर अडिग रहा कि जब तक हुड़दंगी सांसद अपने असंसदीय आचरण के लिए माफी नहीं मांगते, तब तक उनका निलंबन खत्म नहीं किया जाएगा। यह रवैया एक नजीर बनना चाहिए। किसी भी दल की सरकार हो, उसे विधानमंडलों में अशोभनीय व्यवहार स्वीकार नहीं करना चाहिए। वास्तव में अब ऐसे नियम-कानून बनाने की आवश्यकता है कि संसद या विधानसभाओं की मर्यादा भंग करने वाले सदस्यों को उनके किए की सख्त सजा दी जाए। यदि ऐसा नहीं किया जाता तो विधानमंडलों का चलना मुश्किल होगा, क्योंकि न केवल विरोध के लिए विरोध की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, बल्कि तर्क के जवाब में कुतर्क पेश किए जाने लगे हैं।

संसद के इस सत्र में विपक्ष ने पहले तो इसके लिए जतन किए कि सदन न चलने पाए और फिर ऐसे आरोप लगाए कि उसे संसदीय कामकाज में हिस्सा लेने का अवसर नहीं दिया जा रहा है। यदि विपक्ष हंगामा करना पसंद करता है तो फिर उसे इस शिकायत का कोई अधिकार नहीं कि बिना बहस के विधेयक पारित हो रहे हैं। यदि सत्तापक्ष से यह अपेक्षित है कि वह असहमति का आदर करे तो विपक्ष के लिए भी यह आवश्यक है कि वह नकारात्मकता का परित्याग करे। यह देखना दुखद है कि जब राष्ट्रीय महत्व के विषयों की कमी नहीं, तब संसद के सत्र तय समय से पहले खत्म करने पड़ रहे हैं।