कोरोना वायरस के भयावह खतरे से निपटने के लिए देशव्यापी लॉकडाउन की घोषणा के बाद कुछ समस्याएं आनी ही थीं, लेकिन इस बारे में शायद ही किसी ने अनुमान लगाया हो कि महानगरों से एक बड़ी संख्या में लोग अपने घर-गांव जाने के लिए निकल पड़ेंगे। दुर्भाग्य से ऐसा ही हुआ, दिल्ली और कुछ अन्य महानगरों के दिहाड़ी मजदूर, कारखाना श्रमिक और अन्य अनेक लोग जिस तरह अपने घर-गांव जाने के लिए उमड़ पड़े उससे राज्य सरकारों के साथ केंद्र सरकार के समक्ष भी यकायक यह चुनौती आ खड़ी हुई कि इन सबको राहत देने के साथ ही उनके बीच कोरोना वायरस के संक्रमण को फैलने से कैसे रोका जाए?

यह संतोषजनक है कि केंद्र एवं राज्य सरकारें आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के इन लोगों को सुरक्षित ठिकानों पर ठहराने और उनके खाने-पीने की उचित व्यवस्था करने में जुटी हुई हैं। इस व्यवस्था में समाज के सक्षम तबके की ओर से बढ़-चढ़कर जिस तरह योगदान दिया जा रहा है वह समस्या की गंभीरता को कम करने वाला तो है ही, राष्ट्रभाव को बल देने वाला भी है।

महानगरों से हजारों लोगों का पलायन एक मानवीय त्रासदी के अलावा और कुछ नहीं। इस पर गंभीरता से विचार होना चाहिए कि आखिर लॉकडाउन की घोषणा के एक-दो दिन बाद अचानक ऐसा क्या हुआ कि महानगरों से हजारों लोग अपने गांव जाने के लिए निकल पड़े? जब बार-बार यह कहा जा रहा था कि जो जहां है वह वहीं रहे तो फिर ऐसी नौबत क्यों आई कि हजारों-हजार लोग अनजानी आशंका से घिर गए और अपना ठौर-ठिकाना छोड़कर निकल लिए? आखिर अपने कठोर परिश्रम से शहरी जीवन को संचालित करने वालों के प्रति हमारे महानगर इतने निष्ठुर क्यों नजर आए? ये वे सवाल हैं जिन पर हर किसी को और खासकर राजनीतिक वर्ग को कहीं अधिक गहनता से विचार करना होगा। यह वही राजनीतिक वर्ग है जो दिन-रात गरीबों-मजदूरों के हित की बातें करता है, लेकिन जब उसके लिए अपने कहे को सार्थक साबित करने का अवसर आया तो वह नाकामी की इबारत लिखते हुए पाया गया।

यह अच्छा हुआ कि मजदूरों और कामगारों की पलायन की त्रासदी का अहसास खुद प्रधानमंत्री ने किया। उन्होंने मन की बात कार्यक्रम के जरिये इस त्रासदी से दो-चार हो रहे लोगों से माफी मांगकर अपने बड़प्पन का परिचय दिया। नि:संदेह उनके खेद जताने का यह मतलब नहीं निकाला जाना चाहिए कि लॉकडाउन को अनावश्यक बताने वाले सही हैं। लॉकडाउन आवश्यक ही नहीं अनिवार्य था। भारत सरीखे विशाल आबादी और कमजोर स्वास्थ्य संसाधन वाले देश के लिए यही उचित था कि वह लॉकडाउन की जल्द घोषणा करके उसे सफल बनाने में जुट जाए।