यह हैरानी ही नहीं परेशानी की भी बात है कि जब देश के तमाम शहर और खासकर उत्तर भारत के इलाके जानलेवा साबित होते वायु प्रदूषण की चपेट में हैं तब चिंता के केंद्र-बिंदु में केवल दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्र ही हैं। सुप्रीम कोर्ट, राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण से लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के रुख-रवैये से तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि दिल्ली ही देश है। आखिर ये राष्ट्रीय संस्थाएं पूरे देश के पर्यावरण की चिंता कब करेंगी?

यह विडंबना ही है कि इन संस्थाओं के साथ-साथ जब-तब दिल्ली हाईकोर्ट भी राजधानी के प्रदूषण की चिंता करता दिखता है और दूसरी ओर अन्य शहरों की बदतर आबोहवा पर किसी के कान पर जूं रेंगती नहीं दिखती। यह स्थिति तब है जब ऐसे भयावह अध्ययन सामने आ रहे हैं कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, ओडिशा समेत दक्षिण के भी कुछ शहरों का वायुमंडल विषाक्त हो रहा है। यह आवश्यक ही नहीं अनिवार्य है कि दिल्ली के साथ शेष देश के पर्यावरण की भी सुध ली जाए। आखिर इससे विचित्र और क्या हो सकता है कि जब अकेले उत्तर प्रदेश के दस शहर देश के सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं तब ऐसी प्रतीति कराई जा रही है मानो संकट केवल दिल्ली में ही छाया है।

केवल दिल्ली की चिंता किए जाने का दुष्परिणाम यह है कि अन्य राज्य सरकारें और उनके स्थानीय निकायों समेत उनकी प्रदूषण निवारक एजेंसियां हाथ पर हाथ धरे बैठी हैं। उदासीनता और बेपरवाही का आलम यह है कि कई बार वे यह मानने को तैयार ही नहीं होतीं कि पर्यावरण की दृष्टि से हालात बेहद खराब हैं। पर्यावरण की अनदेखी के कैसे घातक परिणाम हो रहे हैं, इसका एक प्रमाण विश्व स्वास्थ्य संगठन की रपट है। इस रपट के अनुसार 2016 में विषैली हवा के चलते भारत में पांच वर्ष से कम आयु के 60 हजार बच्चों की मौत हुई। जहरीली हवा जनित बीमारियों के कारण होने वाली मौतों का यह आंकड़ा दुनिया में भारत की एक डरावनी तस्वीर तो पेश ही करता है, यह भी रेखांकित करता है कि यहां के नीति-नियंता पर्यावरण और साथ ही अपने लोगों की सेहत के प्रति लापरवाह हैं।

यदि इस जानलेवा लापरवाही का परित्याग नहीं किया गया तो हालात नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं। जब यह बार-बार सामने आ रहा है कि दिल्ली-एनसीआर के साथ-साथ शेष देश के एक बड़े हिस्से की आबोहवा सेहत के लिए खतरनाक साबित हो रही है तब कम से कम सुप्रीम कोर्ट, एनजीटी और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को तो सारे देश के पर्यावरण की चिंता समान भाव से करनी ही चाहिए। आखिर ऐसा तो है नहीं कि शेष देश के लोग कमतर हैं अथवा खराब आबोहवा उन्हें कम प्रभावित करती है।

दिल्ली देश की राजधानी है तो इसका यह मतलब नहीं कि यहां के पर्यावरण को बाकी देश के मुकाबले अधिक प्राथमिकता दी जाए। बिगड़ता पर्यावरण ऐसी समस्या भी नहीं जिसे क्षेत्र विशेष तक सीमित करके देखा जाए। इस समस्या को तो समग्रता में ही देखा जाना चाहिए। यह शायद शेष देश के पर्यावरण की अनदेखी का ही परिणाम है कि दिल्ली की आबोहवा सुधारने की कोशिश सफल नहीं हो पा रही है।