कश्मीर से दिल्ली भेजी जा रही चरस की खेप का तस्कर संग पकड़े जाने से जाहिर है कि मादक पदार्थो की तस्करी कुछ युवाओं के लिए धंधा बनती जा रही है। वे भूल जाते कि यह रास्ता उन्हें जेल की सलाखों के पीछे ले जाएगा। जिंदगी में शॉटकट से कोई सफलता हासिल नहीं की जा सकती। विगत दिवस नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो की टीम ने जम्मू-श्रीनगर राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित एक नाके से कश्मीरी युवक को पंद्रह किलो चरस के संग गिरफ्तार कर लिया। कश्मीर में मादक पदार्थो की तस्करी और खेती आम बात है। इससे राज्य की अर्थ व्यवस्था पर भी बुरा असर पड़ रहा है। नशे के सौदागर इन युवाओं को भ्रमित कर पहले नशे की लत डालते हैं फिर उन्हें इसकी तस्करी के लिए मजबूर कर रहे हैं। इन सौदागरों का संबंध आतंकवादियों से भी है, जो उन्हें आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए नशे का सहारा ले रहे हैं। पिछले एक माह में जम्मू और सीमांत क्षेत्रों से करोड़ों रुपये की हेरोइन पकड़ी गई। आतंकवादियों को भी लगता है कि नारको टेरेरिज्म कश्मीर के लिए सबसे मुफीद है। इसलिए कुछ लोग कश्मीर में इसकी खेती से भी परहेज नहीं करते। उन्हें लगता है कि कानून उनका कुछ नही बिगाड़ सकता।

इसका एक कारण यह भी है कि एजेंसी कश्मीर के आरोपियों को पकड़ भी लेती है तो उनसे पूछताछ के बाद अन्य आरोपियों को पकड़ने के लिए जब श्रीनगर जाते हैं तो स्थानीय लोग सहयोग नहीं करते। उनसे कई बार मारपीट की घटनाएं भी हुईं। कई बार आरोपी श्रीनगर में केस को ट्रांसफर करवा लेते हैं, जिससे जांच अधूरी रही जाती है। महंगा नशा जैसे अफीम, कोकीन, स्मैक, हेरोइन की तस्करी पाक से हो रही है। इसकी उगाही का पैसे का इस्तेमाल आतंकवाद को जिंदा रखने के लिए हो रहा है। अलगाववादियों पर एनआइए द्वारा शिकंजा कसने के कारण सीमापार से टेरर फंडिंग में लगाम लगी है। पाकिस्तान नारको टेरेरिज्म को बढ़ावा देने के लिए कश्मीरियों के साथ स्थानीय युवाओं को तस्करी में फंसा स्वार्थ साध रहा है। पुलिस तह तक जांच करे ताकि इनके नेटवर्क को ध्वस्त किया जा सके।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]