अमेरिका ने ब्रिटेन और फ्रांस के समर्थन से पाकिस्तान में पल रहे आतंकी सरगना मसूद अजहर को प्रतिबंधित करने का मसौदा सीधे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पेश करके चीन को शर्मिंदा करने का ही काम किया है। अचानक आए इस प्रस्ताव से चीन का हैरान-परेशान होना स्वाभाविक है, लेकिन विश्व समुदाय के समक्ष उसे बेनकाब करने का और कोई उपाय भी नहीं। चीन को इसलिए बार-बार शर्मसार करने की जरूरत है, क्योंकि वह सुरक्षा परिषद की ओर से प्रतिबंधित आतंकी संगठन जैश ए मुहम्मद के सरगना का बेशर्मी से बचाव करने में लगा हुआ है। ऐसा करके वह दक्षिण एशिया का माहौल बिगाड़ने के साथ ही आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई को कमजोर भी कर रहा है। वह ऐसा इसीलिए कर रहा है ताकि पाकिस्तान का इस्तेमाल मनचाहे तरीके से कर सके।

पाकिस्तान से दोस्ती निभाने के फेर में चीन यह देखने से भी इन्कार कर रहा है कि दुनिया में उसकी छवि किस तरह तार-तार हो रही है। यह अच्छा हुआ कि मसूद अजहर पर पाबंदी का मसौदा पेश होने के पहले अमेरिकी विदेश मंत्री ने चीन को लताड़ लगाते हुए यह भी कहा कि एक ओर वह अपने यहां लाखों मुसलमानों को कैद करके उन्हें प्रताड़ित कर रहा है और दूसरी ओर एक आतंकी सरगना का बचाव कर रहा है। उन्होंने चीन के इस रवैये को उसका शर्मनाक पाखंड करार दिया। इससे हैरानी नहीं कि चीन के ऐसे पाखंड पर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान यह कहकर अपनी फजीहत कराना बेहतर समझ रहे हैैं कि उन्हें तो इसकी खबर ही नहीं कि चीन ने अपने यहां लाखों मुसलमानों को बंदी बना रखा है।

चीन की अड़ंगेबाजी के चंद दिनों बाद ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मसूद अजहर के खिलाफ एक और प्रस्ताव आने से भारत के कूटनीतिक प्रयासों की गति का ही पता चलता है, लेकिन समय की मांग यह है कि भारत पाकिस्तान और चीन के खिलाफ अपनी कूटनीति को धार देने के साथ ही कश्मीर को रास्ते पर लाने के भी उपाय करे। ध्यान रहे कि कश्मीर का मौजूदा माहौल ही पाकिस्तान और चीन को भारत को तंग करने के अवसर प्रदान कर रहा है।

गत दिवस केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली ने यह सही कहा कि जम्मू-कश्मीर में नेहरू के अनुच्छेद 35-ए ने इस क्षेत्र के विकास को रोका और यहां के हालात बिगाड़े, लेकिन सवाल यह है कि आखिर मोदी सरकार ने पांच साल तक कश्मीर को पटरी पर लाने के कोई ठोस कदम क्यों नहीं उठाए? क्या यह एक तथ्य नहीं कि पीडीपी और भाजपा की साझा सरकार के एजेंडे में धारा 370 का कहीं कोई जिक्र ही नहीं था? अरुण जेटली ने यह तो कहा कि अब समय आ गया है कि हम विशेष दर्जे से लेकर अलगाव तक की यात्रा समाप्त करें, लेकिन इस बारे में कुछ नहीं बताया कि आखिर यह काम होगा कैसे?

यह काम आसान इसलिए नहीं, क्योंकि पीडीपी हो या नेशनल कांफ्रेंस, कश्मीर में असर रखने वाले ये दोनों राजनीतिक दल विशेष दर्जे को केवल कश्मीर की जीवन रेखा ही नहीं बता रहे, बल्कि चुनाव के चलते फिलहाल अलगाववादियों सरीखी भाषा भी बोल रहे हैैं।