अहमदाबाद के मोटेरा स्टेडियम में विशाल जनसमुदाय को संबोधित करते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने आतंकवाद से मिलकर लड़ने की जो बात कही वह भारतीय हितों के अनुकूल है और भारत अमेरिका से ऐसी ही अपेक्षा रखता है। अमेरिका ने आतंकवाद से लड़ाई के मामले में इसके पहले भी भारत का साथ देने की बात कही है, लेकिन यह भी सच है कि अभी अमेरिकी प्रशासन की ओर से पाकिस्तान पर वैसा दबाव नहीं बनाया जा रहा है जैसा कि अपेक्षित ही नहीं अनिवार्य है। यही कारण है कि पाकिस्तान सुधरने का नाम नहीं ले रहा है। इसका ताजा प्रमाण फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स यानी एफएटीएफ की बैठकों में भी मिल चुका है। तमाम चेतावनियों के बावजूद पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ वैसे कदम उठाने के लिए तैयार नहीं जैसे आवश्यक हैं। भारत की चिंता का एक कारण अफगानिस्तान के हालात भी हैं। अफगानिस्तान के इन हालात के पीछे पाकिस्तान की बड़ी भूमिका है।

अफगानिस्तान के लिए खतरा बने तालिबान और अन्य आतंकी संगठन पाकिस्तान से ही सहयोग, समर्थन और संरक्षण पा रहे हैं। अमेरिका अफगानिस्तान से अपने सैनिकों को निकालने के लिए तत्पर है और माना जा रहा है कि जल्द ही इस बारे में कोई समझौता हो सकता है। भारत को यह सुनिश्चित करना होगा कि यह समझौता भारतीय हितों के लिए खतरा न बनने पाए। यह ठीक है कि अमेरिका भारत की रक्षा, सुरक्षा और सीमाओं की चौकसी संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन आवश्यकता इस बात की भी है कि वह पाकिस्तान को इसके लिए बाध्य करे कि वह आतंकवाद का रास्ता छोड़े।

अहमदाबाद में अमेरिकी राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा करते हुए जिस तरह भारत और अमेरिका के साझा लोकतांत्रिक मूल्यों का जिक्र किया वह अपेक्षा के अनुकूल ही है। इन्हीं साझा लोकतांत्रिक मूल्यों के कारण भारत और अमेरिका एक-दूसरे के सहयोगी के रूप में जाने जाते हैं। उनके बीच सहयोग निरंतर बढ़ भी रहा है। वास्तव में विश्व में शांति और प्रगति के लिए यह आवश्यक है कि भारत और अमेरिका मिलकर काम करें। अमेरिकी राष्ट्रपति ने न केवल मोदी के परिश्रम और सफलता की सराहना की, बल्कि उन्हें सख्त वार्ताकार भी बताया। यह दोनों नेताओं के एक-दूसरे के प्रति विश्वास और सम्मान को दर्शाता है। यह इसलिए और अधिक उल्लेखनीय है, क्योंकि अमेरिकी राष्ट्रपति की यात्रा से पहले एक वर्ग द्वारा ऐसा माहौल बनाने की कोशिश की जा रही थी जैसे वह भारत के समक्ष कुछ कठिन सवाल रखने जा रहे हों। ऐसा कोई माहौल बनाने की कोशिश ट्रंप की ओर से भारत और प्रधानमंत्री के प्रति दिखाई गई गर्मजोशी से अपने आप निरर्थक साबित हुई।