साल दर साल दिल्ली की आबोहवा का बद से बदतर होते जाना चिंताजनक है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले चार सालों में दिल्ली का वायु प्रदूषण ढाई गुना तक बढ़ गया है। यह वृद्धि भी दिल्ली के तमाम क्षेत्रों में दर्ज की गई है। हालांकि दिल्ली-एनसीआर की आबोहवा को सुधारने के लिए तमाम स्तरों पर विभिन्न उपाय किए जा रहे हैं। ग्रेडिंग रिस्पांस सिस्टम के बाद विस्तृत एक्शन प्लान भी बनाया गया है। धुआं छोड़ने वाले वाहनों, डीजल से जेनरेटर चलाने और कूड़ा जलाने वालों का फिलहाल चालान करने का फैसला किया जा चुका है। दिल्ली मेट्रो में जल्द से जल्द कोच की संख्या बढ़ाने व पार्किग शुल्क पांच गुना तक करने जैसे सुझाव भी दिए गए हैं। इस बारे में दिल्ली में रहने वालों को भी सोचने की जरूरत है कि आबोहवा को स्वच्छ बनाने में वे योगदान क्यों नहीं दे सकते? गौर करने वाली बात यह है कि आखिर सरकारी एजेंसियों के तमाम उपायों के बावजूद दिल्लीवासी इस तरफ ध्यान क्यों नहीं देते?

जब पिछले साल दिल्ली सरकार ने ऑड-इवेन नंबर के आधार पर निजी कारों को सड़कों पर उतरने का नियम बनाया तो कई ओर से इसका विरोध हुआ था, लेकिन इसका एक फायदा यह हुआ था कि लोग कारपुल करने लगे थे, मगर जैसे ही योजना खत्म हुई हालात फिर से पहले जैसे हो गए। आज भी ज्यादातर लोग निजी कारों का इस्तेमाल करने से बाज नहीं आ रहे। हालांकि, इसके लिए सिर्फ जनता को ही दोषी ठहराना ठीक नहीं होगा। आज भी दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था ठीक नहीं है।

दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) की बसों का हाल यह है कि वे कहां रुक जाएं किसी को भी नहीं पता। साथ ही इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है। सरकार अब तक लोगों को बसों में यात्र के लिए प्रोत्साहित करने की योजना नहीं बना सकी है। यहां तक कि किराया आधा करने की योजना भी परवान नहीं चढ़ सकी है। ऐसे में जब तक जनता और सरकार इसकी जरूरत को नहीं समङोंगे तब तक इस समस्या से निदान मिलना मुमकिन नहीं है। ऐसे में दिल्ली सरकार को वायु प्रदूषण पर नियंत्रण पाने के लिए अपनी योजनाओं से जनता को जोड़ना होगा, साथ ही दिल्ली में सार्वजनिक परिवहन की व्यवस्था को भी सुधारना होगा।

 

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]