मंगलवार से विधानसभा का मानसून सत्र शुरू हो रहा है। इसमें कई महत्वपूर्ण विधेयक सरकार की ओर से पेश किये जाने हैं। इनमें धर्मांतरण निषेध विधेयक और भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन विधेयक पर विपक्ष आस्तीन चढ़ा रहा है। सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन का प्रस्ताव राज्यपाल से वापस होने और विपक्षी दलों के भारी हंगामे व टीएसी के सदस्यों की असहमति के बाद सरकार ने सीएनटी-एसपीटी एक्ट संशोधन बिल को विधानसभा में पेश न करने का मन बनाया है। लेकिन राज्य के विकास व आधारभूत संरचनाओं और मोमेंटम झारखंड के तहत हुए करार को देखते हुए उद्योग धंधों की स्थापना के लिए जमीन की उपलब्धता जरूरी है। इसलिए भूमि अधिग्रहण कानून में संशोधन किया जाना सरकार के नजरिये से जरूरी हो गया है। पिछले दिनों कर्ज के बोझ तले दबे प्रदेश के कई किसानों ने खुदकशी की। विपक्ष इस मुद्दे को लेकर भी सदन में सरकार को घेरेगा। मुद्दा अहम है। किसी भी प्रदेश के लिए यह शर्म की बात है कि कर्ज और तंगहाली के कारण अन्नदाता खुदकशी करने को मजबूर हो जाए। विधानसभा में सिर्फ हंगामे के लिए यह बात न उठे। इस पर सरकार को भी सकारात्मक पहल करते हुए किसानों की खुदकशी रोकने और उनके लिए किये जा रहे प्रयासों से विपक्ष समेत पूरे प्रदेश की जनता को संतुष्ट करना चाहिए। जिससे किसानों को कर्ज के मकडज़ाल से निकालकर उनके फसलों का सही मूल्य मिले और उनकी आर्थिक स्थिति सुदृढ़ हो। बजट सत्र और उसके पूर्व भी गतिरोध और हंगामे के कारण सदन की कार्यवाही सुचारू ढंग से नहीं चल पाई थी। लोकतांत्रिक परंपरा के तहत विधानसभा का सुचारू रूप से चलना जरूरी है। सदन में गतिरोध बने रहने से आमलोगों के हितों से जुड़े मुद्दे जनप्रतिनिधि सदन में उठा नहीं पाते हैं। सदन के सुचारू रूप से संचालन के लिए सरकार और विपक्ष दोनों को संवेदनशील होना होगा। सरकार को चाहिए की सदन में पेश किये जाने वाले वैसे विधेयक जिसे लेकर विवाद है, उस पर विपक्ष को भी सहमत कराएं, चर्चा हो और आपत्तियों को दूर किया जाए। विपक्ष भी सिर्फ विरोध करना है, इसलिए सरकार के किसी भी विधेयक या मुद्दे का विरोध करेंगे ही इस अवधारणा को छोड़े। सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को यह समझना होगा कि उनके अपने व्यक्तिगत हितों के टकराव में नुकसान आम जनता का हो रहा है। जो मुद्दे आम जनता के हितों से जुड़े हों उनपर सर्वसम्मति बनानी चाहिए। सिर्फ विरोध जताने के सदन की कार्यवाही बाधित न हो।
हाइलाइटर
लोकतांत्रिक परंपरा के तहत विधानसभा का सुचारू रूप से चलना जरूरी है। सदन में गतिरोध रहने से आमलोगों की हितों से जुड़े मुद्दे जनप्रतिनिधि सदन में उठा नहीं पाते।

[ स्थानीय संपादकीय : झारखंड ]