स्वतंत्रता दिवस समारोह में शासन के आला अधिकारियों की अनुपस्थिति चिंता का विषय है। साफ है अधिकारी-कर्मचारी अपने दायित्वों के निर्वहन में रुचि नहीं दिखा रहे हैं।
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स्वतंत्रता दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्व पर अधिकारियों व कर्मचारियों की अनुपस्थिति बेहद चिंता का विषय है। राष्ट्रीय पर्वों के प्रति यदि प्रदेश को चलाने वाले अधिकारियों का ऐसा रवैया रहेगा तो फिर अन्य से क्या अपेक्षा की जा सकती है। यह स्थिति किसी भी लिहाज से उचित नहीं ठहराई जा सकती। इसका समाज के भीतर भी अच्छा संदेश नहीं जाता है। जनता सोचती है कि यदि अधिकारी अपने राष्ट्रीय कत्र्तव्यों के प्रति इतना असंवेदनशील है तो फिर प्रदेश के लिए उससे क्या अपेक्षा की जा सकती है। दरअसल, ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि जब अधिकारियों व कर्मचारियों ने राष्ट्रीय पर्व से नजरें फेरी हों। यह बात दीगर है कि इस बार मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इसका संज्ञान लिया और सख्ती दिखाते हुए ऐसे अधिकारियों व कर्मचारियों की सूची तलब कर ली। साथ ही उनके खिलाफ सख्त कदम उठाने के निर्देश दिए। यह तो बात हुई सख्ती की, देखा जाए तो राष्ट्रीय पर्वों पर उपस्थित स्वत: स्फूर्त होनी चाहिए। अधिकारी-कर्मचारियों को राष्ट्रीय गौरव का भान होना चाहिए। राष्ट्रीय पर्वों में शिरकत उनका नैतिक दायित्व है। ऐसी बातें ही मातहतों में संदेश देने का काम करती हैं। यदि अधिकारी सजग है तो मातहत को सजग रहना ही पड़ेगा। अब बात करें इस मामले में मुख्यमंत्री के निर्देशों की। मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव के साथ ही तमाम निदेशालयों, विभागों व जिलों में आयोजित होने वाले कार्यक्रमों में अनुपस्थित होने वाले कर्मचारियों की सूची भी तलब की है। इससे अधिकारियों व कर्मचारियों में हड़कंप मचा हुआ है। हालांकि, यह सुनिश्चित करना कि कौन अधिकारी व कर्मचारी अनुपस्थित थे, एक कठिन काम है। दरअसल, स्वतंत्रता दिवस व गणतंत्र दिवस जैसे पर्वों पर कार्यालयों में हाजिरी नहीं लगाई जाती। जिन कार्यालयों में समुचित संख्या में सीसी कैमरे हैं, वहीं अधिकारी व कर्मचारियों की उपस्थिति के बारे में बेहतर जानकारी दी सकती है, शेष कार्यालयों में आसानी से अनुपस्थित अधिकारी व कर्मचारियों की पहचान नहीं हो सकती। जाहिर है कि ऐसे में जिलों व विभागों से गोलमोल रिपोर्ट ही सामने आएगी। हालांकि, मुख्यमंत्री के इस कदम से एक बात तो तय है कि भविष्य में अधिकारी व कर्मचारी राष्ट्रीय पर्व के मौके पर उपस्थित होने के लिए जल्दी से कन्नी नहीं काटेंगे। बेहतर होगा कि सरकार अधिकारियों व कर्मचारियों को नैतिक दायित्व का बोध कराते हुए उन्हें ऐसे राष्ट्रीय पर्वों पर शिरकत करने को प्रेरित करे।

[ स्थानीय संपादकीय : उत्तराखंड ]