पिछले कुछ समय से देश की राजधानी दिल्ली और उसके आसपास के शहरों के निजी अस्पतालों के बारे में जैसी गंभीर और मेडिकल पेशे को शर्मसार करने वाली शिकायतें आ रही थीं उन्हें देखते हुए उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई आवश्यक हो गई थी। यह अच्छा हुआ कि जहां हरियाणा सरकार की एक समिति ने उपचार में हुए खर्च को अनाप-शनाप तरीके से बढ़ाकर वसूलने वाले फोर्टिस अस्पताल का लाइसेंस रद करने की सिफारिश की वहीं दिल्ली सरकार ने जीवित शिशु को मृत बताने वाले मैक्स अस्पताल को बंद करने का फैसला लिया।

नि:संदेह यह एक कठोर फैसला है, लेकिन जब मनमानी की सीमाएं पार करने लगें तब फिर सख्त कदम उठाने जरूरी हो जाते हैं। ये दो मामले निजी अस्पतालों की मनमानी और लापरवाही के उदाहरण भर हैं। तमाम निजी अस्पतालों ने जिस तरह कमाई के अनुचित और अनैतिक तौर-तरीके अपना लिए हैं उसके चलते वे अपने साथ निजी क्षेत्र के सभी अस्पतालों को बदनाम करने और एक तरह से अपने हाथों अपनी छवि खराब करने का काम कर रहे हैं। यह आम धारणा गहराती जा रही है कि वे उपचार में खर्च के नाम पर लूट-खसोट करते हैं। कई निजी अस्पताल तो इसलिए कुख्यात हो रहे हैं कि वहां जानबूझकर अनाप-शनाप बिल बनाया जाता है। एक समस्या यह भी है कि उनकी मनमानी के खिलाफ कहीं कोई सुनवाई नहीं होती।

[राष्ट्रीय संपादकीय]

अगर इन शिकायतों का सही तरह संज्ञान लिया जा रहा होता तो और उनके निस्तारण की कोई प्रभावी व्यवस्था बनाई गई होती तो शायद हालात इतने खराब नहीं होते। नि:संदेह निजी अस्पतालों के संचालकों से यह अपेक्षा नहीं की जाती और न ही किसी को करनी चाहिए कि वे अपने आर्थिक हितों की अनदेखी कर समाज सेवा करें, लेकिन यह भी नहीं होना चाहिए कि वे मरीजों को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझ लें। समझना कठिन है कि निजी अस्पताल अपनी साख बनाने और साथ ही मेडिकल पेशे की गरिमा बरकरार रखने के प्रति सतर्क क्यों नहीं हैं? ऐसा लगता है कि वे साबुन-तेल की आम कंपनियों की तरह मुनाफे का लक्ष्य तय करके उसे येन-केन प्रकारेण पूरा करने की कोशिश में यह भूल जाते हैं कि चिकित्सा व्यवसाय की अपनी एक मर्यादा है। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि निजी क्षेत्र के अस्पतालों की मनमानी के लिए प्रभावी नियम-कानूनों के साथ-साथ सक्षम नियामक संस्थाओं का अभाव जिम्मेदार है।

इससे अधिक निराशाजनक और कुछ नहीं कि एक ओर सरकारी स्वास्थ्य ढांचा लस्त-पस्त होता जा रहा है और वहां आम आदमी मजबूरी में ही जाना पसंद कर रहा है वहीं दूसरी ओर निजी क्षेत्र के अस्पताल बेलगाम होते जा रहे हैं। इसमें दो राय नहीं कि निजी अस्पताल खोलने-चलाने के साथ उपचार का खर्च लगातार बढ़ रहा है, लेकिन किसी को तो यह देखना ही होगा कि मरीजों के साथ लूट न होने पाए। उपचार में लापरवाही बरतने और इलाज में खर्चे के नाम पर उगाही करने वाले अस्पतालों को बंद करने जैसे सख्त कदम समस्या का एक हद तक ही उचित समाधान हैं। सरकारों का जोर बेलगाम अस्पतालों को बंद करना नहीं, यह सुनिश्चित करना होना चाहिए कि वे मुनाफाखोरी की दुकानें न बनें।

[राष्ट्रीय संपादकीय]