वायुसेना प्रमुख बीएस धनोआ के इस दो टूक बयान के बाद बालाकोट में साहसिक सैन्य कार्रवाई पर संदेह जताने और बेतुके सवाल खड़े करने वालों को अपनी नादानी का भान हो जाए तो बेहतर कि हमारा काम लक्ष्य भेदना था, न कि लाशें गिनना। इसका कोई मतलब नहीं कि एक ओर वायुसेना की कार्रवाई की तारीफ की जाए और दूसरी ओर ऐसे सवाल खड़े कर खोटी सोच का परिचय दिया जाए कि बालाकोट में कितने आतंकी मरे? हैरत नहीं कि ऐसी कोई जानकारी सामने आने पर यही लोग मारे गए आतंकियों के नाम-पते जानने की मांग करने लगें। पाकिस्तान और साथ ही दुनिया को दंग कर देने वाली सैन्य कार्रवाई को लेकर भारत में जो कुछ हो रहा है उसे फूहड़ राजनीति के अलावा और कुछ नहीं कहा जा सकता। इस तरह की सस्ती राजनीति से अगर किसी को लाभ मिल रहा है तो पाकिस्तान को।

सैन्य कार्रवाई पर सस्ती राजनीति को बल न मिले, यह उन भाजपा नेताओं को भी याद रखना चाहिए जो अति उत्साह में अपना संयम खो रहे हैं। यह इसलिए और भी आवश्यक है, क्योंकि सारी दुनिया इससे परिचित है कि बालाकोट में सैन्य कार्रवाई राजनीतिक नेतृत्व की इच्छाशक्ति का परिणाम है। जो भी लोग वायुसेना की कार्रवाई पर उलटे-सीधे बयान देकर राजनीतिक एकजुटता को छिन्न-भिन्न कर रहे हैं उन्हें यह भी ध्यान देना चाहिए कि पाकिस्तान का मीडिया और यहां तक कि वहां की सरकार उनके बेतुके बयानों को भुनाने में जुट गई है। क्या हमारे नेता यही चाह रहे थे कि उनका सतही विमर्श पाकिस्तान की ढाल बने? अगर नहीं तो फिर वे अपनी असहमति को भोंडे ढंग से क्यों दर्ज करा रहे हैं?

यह अच्छा हुआ कि वायुसेना प्रमुख ने यह भी साफ किया कि आतंकवाद के खिलाफ अॅापरेशन अभी जारी है। ऐसा कोई बयान समय की मांग थी ताकि पाकिस्तान को यह संदेश जाए कि भारत बालाकोट दोहरा भी सकता है। उसे दबाव में बनाए रखना इसलिए जरूरी है, क्योंकि लगता यही है कि वह भारत की ओर से बनाए गए दबाव से जैसे-तैसे मुक्त होना चाहता है। यह मानना सही नहीं होगा कि केवल बालाकोट में सैन्य कार्रवाई से पाकिस्तान सही राह पकड़ लेगा। वह भारत को नुकसान पहुंचाने वाले आतंकी संगठनों को पालना-पोसना आसानी से छोड़ने वाला नहीं। यह कोई छिपी बात नहीं कि वह आतंकी संगठनों पर पाबंदी लगाने का दिखावा करता आ रहा है। इसका सबसे बड़ा सुबूत यह है कि पाकिस्तान में मुंबई हमले के गुनहगार अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं।

पाकिस्तान को सही रास्ते पर लाने के लिए यह भी जरूरी है कि उस पर सैन्य दबाव के साथ कूटनीतिक दबाव भी बनाए रखा जाए। कोशिश यह होनी चाहिए कि वह खुद को आर्थिक रूप से और असहाय महसूस करे। उसकी आर्थिक कमजोरी ही उसे घुटने टेकने को मजबूर करेगी। मुश्किलों से घिरे और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अलग-थलग पड़ते पाकिस्तान को किसी तरह की ढील देना पुरानी गलतियां दोहराने जैसा होगा। चूंकि वह तभी सुधरेगा जब उसके सामने और कोई उपाय नहीं रह जाएगा इसलिए यह और भी आवश्यक है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में एकजुट और अडिग दिखे।