राज्य में अधिकारी नई तकनीक को खुले मन से स्वीकार नहीं कर रहे। यह स्थिति चिंताजनक है। ऐसे अफसर व कर्मियों को चिह्नित कर उनके खिलाफ सरकार को कड़ी कार्रवाई करनी होगी।
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आर्थिक विकास दर और ईज ऑफ डूइंग बिजनेस में विश्व बैंक से सराहना पाने वाले झारखंड का डिजिटल होने की राह में फिसड्डी रह जाना अखरता है। 36 राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों को लेकर भारत सरकार के सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा कराए गए अध्ययन में झारखंड को सबसे पिछले पायदान वाले राज्यों की श्रेणी में शुमार किया गया है। एक निजी एजेंसी की मदद से कराए गए इस सर्वे में झारखंड के साथ-साथ जिन सात राज्यों को सबसे खराब माना गया है उनमें उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश, असम, ओडिशा और बिहार शामिल हैं। वहीं, जिन राज्यों को सबसे अच्छा माना गया है उनमें दिल्ली, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, चंडीगढ़, लक्ष्यद्वीप, केरल व गुजरात शामिल हैं। डिजिटल उपाय अपनाने वाले राज्यों को मिले अंकों के आधार पर यह वर्गीकरण किया गया है।
डिजिटल व्यवस्था को अपनाने के मुख्यमंत्री रघुवर दास के बार-बार के निर्देश के बावजूद झारखंड की यह स्थिति चुनौतीपूर्ण है। संभव है कि यह सर्वे कुछ माह पूर्व आंकड़ों को सहेजकर किया गया हो लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि डिजिटल होने के राज्य सरकार के प्रयासों पर नौकरशाही हावी है। सरकारी कामकाज को कागज मुक्त बनाने को लेकर पिछले साल प्रयास शुरू किया गया था। ई-आफिस की इस अवधारणा पर सरकारी अधिकारी और कर्मचारियों की प्रवृत्ति भारी पड़ रही है। वे नई तकनीक को खुले मन से स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं। यह स्थिति ठीक नहीं है और विकास के रास्ते पर तेजी से डग भरते झारखंड के लिए चिंताजनक है। सूचना प्रौद्योगिकी, ग्रामीण विकास, उद्योग एवं खान, कार्मिक और रांची जिले को पहले चरण में ई-आफिस में तब्दील किया जाना था जो अबतक नहीं हो सका है। जैप आइटी ने तो अपने को काफी हद तक पेपरलेस आफिस में तब्दील कर लिया है लेकिन अन्य महकमों का रवैया ढीला है। दरअसल, पेपरलेस आफिस बनाने के लिए फाइलों को डिजिटल मोड में लाना होता है। फाइलों को स्कैन कर उसे अपलोड करना है। यह प्रक्रिया संबंधित विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों के सहयोग के बिना पूरी नहीं होगी। ये लोग सहयोग नहीं कर रहे हैं। सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों का यही रवैया रहा तो आने वाले कई सालों में भी झारखंड डिजिटल तरीके से कामकाज शुरू नहीं कर सकेगा। सरकार को चाहिए कि ऐसे अफसर व कर्मी को चिह्नित कर उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई करे तभी डिजिटल झारखंड का मार्ग प्रशस्त होगा।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]