झारखंड के लोकसभा और राज्यसभा सांसदों की सांसद निधि की राशि विकास कार्यो में खर्च नहीं हो पा रही है। सांसद निधि की राशि समय पर खर्च न हो पाने की वजह यह नहीं है कि सांसद इस राशि को व्यय करने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं बल्कि वजह यह है कि राशि की समय पर निकासी ही नहीं हो पा रही है। सांसद निधि की राशि की निकासी के लिए जरूरी औपचारिकताओं का समय पर निर्वहन नहीं किया जा रहा है। केंद्रीय सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रलय को तकनीकी दिक्कत पेश आ रही है। इस बारे में मंत्रलय ने राज्य सरकार से पत्रचार भी किया है। तमाम सांसदों की दूसरी किश्त की निकासी रुकी हुई है। सांसदों का फंड जिलों में विकास कार्यो में सीधे व्यय किया जाता है। यह राशि नहीं व्यय होगी तो विकास कार्य तो बाधित होगा ही साथ ही सांसद की व्यक्तिगत छवि भी जनता के बीच खराब होगी। प्रत्येक सांसद को प्रतिवर्ष पांच करोड़ रुपये सांसद क्षेत्रीय विकास निधि के मद में दिए जाते हैं।

यह राशि यदि उसके संसदीय क्षेत्र में विकास कार्यो पर खर्च होती है तो संबंधित जिले की सूरत तो बदलती ही है, सांसद की भी जय-जयकार होती है। पैसे खर्च न हो पाने की पीड़ा सांसदों ने राज्य सरकार से साझा की है। यह भी कहा है कि कोष की राशि समय पर नहीं मिलने के कारण उन्हें आम जनता के रोष का शिकार होना पड़ता है। हालांकि, सांसद निधि की राशि जारी न होने के लिए सिर्फ राज्य सरकार जिम्मेदार नहीं है। सांसदों की व्यक्तिगत तौर पर भी जिम्मेदारी बनती है कि वे सांसद निधि से कराए गए कार्यो पर निगाह रखें और इस राशि से होने वाले विकास कार्यो से जुड़े उपयोगिता प्रमाण पत्र समय पर जमा कराएं। उपयोगिता प्रमाण पत्र समय पर न जमा होने के चलते तकनीकी दिक्कतें पेश आती हैं। विधायक निधि की राशि में भी कुछ ऐसी ही दिक्कत पेश आती है। कई बार यह मामला विधानसभा में भी उठा चुका है, विधायकों द्वारा मामला उठाए जाने के बाद वित्तीय नियमों को शिथिल किया जाता है और इस निधि की अगली किश्त जारी कर दी जाती है। विधानसभा के स्तर पर तो यह चल जाता है लेकिन दिल्ली इस मामले में सख्त है। समय पर उपयोगिता प्रमाण पत्र न मिलने के चलते पैसे रोक दिए जाते हैं। जरूरी है कि सांसद अपनी जिम्मेदारी को समङों और विकास कार्यो के साथ-साथ इसके एवज में आने वाली तकनीकी बाधाओं को संबंधित जिले के उपायुक्त के साथ समन्वय कर दूर करें।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]