ब्लर्ब : विकास का पहिया इस तरह घूमना चाहिए कि कोई भी क्षेत्र सुविधाओं से अछूता न रहे। नई सरकार के समक्ष चुनौतियों के साथ लोगों की उम्मीदें भी जुड़ी हैं।

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प्रदेश में विकास के दावे किए जाते हैं और इसमें काफी हद तक सच्चाई भी है, लेकिन प्रदेश में एक हिमाचल ऐसा भी बसता है जो विकास की लौ से कोसों दूर है। प्रदेश में अब भी कई जगह लोगों को बीमार होने पर पालकी में ही अस्पताल तक पहुंचाना पड़ता है। इन्हीं की एक बानगी है चंबा जिले के सलूणी उपमंडल का हलोई गांव। पिछड़ेपन का दंश झेल रहे चंबा जिला के कई गांव तक अभी तक सड़क सुविधा नहीं जुड़ पाए हैं। सड़क से करीब तीन किलोमीटर दूर बसे इस गांव में यूं तो लोगों को रोजाना इस तरह की परेशानियों से जूझना पड़ता है, लेकिन बुधवार देर रात प्रसव पीड़ा से कराहती महिला को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए पालकी का सहारा लेना पड़ा। दर्द से कराहती इस गर्भवती को तीन घंटे बाद अस्पताल पहुंचाया, सुखद है कि अब जच्चा और बच्चा दोनों सुरक्षित हैं। यह दर्द सिर्फ हलोई की महिला का ही नहीं है, प्रदेश के अन्य जनजातीय जिलों में भी कई गांव सड़क सुविधा से वंचित हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में करीब 27 गांव ऐसे हैं जहां सड़क सुविधा तो दूर बिजली की व्यवस्था भी नहीं है। प्रदेश के हर गांव को विकसित की श्रेणी में लाने की इच्छाशक्ति कहीं सरकारी सुस्ती के कारण पूरी नहीं हो रही तो कहीं लोग खुद ही विकास के दुश्मन बन रहे हैं। किसी भी सरकार का प्राथमिक दायित्व है कि लोगों को बेहतर मूलभूत सुविधाएं मिलें। पहाड़ी प्रदेश हिमाचल ने अस्तित्व में आने के बाद न केवल हर क्षेत्र में विकास के आयाम छुए हैं, बल्कि लोगों के जीवन को सरल बनाने की दिशा में भी सरकारें प्रयासरत रही हैं। सरकारें किसी भी दल की रही हों, प्रदेश का विकास हुआ है। शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन व पर्यटन क्षेत्र में हिमाचल अग्रणी राज्य बनकर उभरा है। देश के कई राज्यों में हिमाचल के विकास मॉडल को अपनाया है। छोटा राज्य होने के बावजूद हिमाचल की उपलब्धियां किसी भी मायने में छोटी नहीं हैं। इन सबके बीच दूरदराज के क्षेत्र विकास की दौड़ में पिछड़ रहे हैं। लोगों को कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में जीवनयापन करना पड़ रहा है। जरूरत है ऐसा तंत्र विकसित करने की कि प्रदेश के हर गांव को उसके हिस्से की धूप मिल सके।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]