मानसून से पहले ही दिल्ली में डेंगू-चिकनगुनिया ने दस्तक दे दी है। इस पर अभी से सचेत होने की जरूरत है क्योंकि साल दर साल इनके मामले बढ़ते जा रहे हैं। इस वर्ष अब तक डेंगू के डंक से 32 लोग बीमार हो चुुके हैं जबकि चिकनगुनिया का आंकड़ा रिकॉर्ड 86 तक पहुंच चुका है। सन 2012 से 2017 के बीच पहली बार मार्च और अप्रैल महीने में चिकनगुनिया के इतने मामले सामने आए हैं। इस साल डेंगू-चिकनगुनिया के आगाज से ही अंजाम का अंदाजा लगाया जा सकता है और इसलिए अभी से ही हमें रोकथाम की शुरुआत करनी चाहिए। इसमें जरा भी देर भारी पड़ सकती है।
राजधानी में सरकारी स्तर पर बीमारी की रोकथाम और मच्छरों की उत्पत्ति रोकने के अभियान में ही खामियां हैं। सरकार हर बार यह अनुमान लगाने में नाकाम रहती है कि डेंगू और चिकनगुनिया का असर कितना व्यापक होने वाला है। डेंगू व चिकनगुनिया से जंग जीतने के लिए जरूरी है कि सरकार, नगर निगम, रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन (आरडब्ल्यूए), आम लोग और अन्य सिविक एजेंसियां आपस में मिलकर काम करें क्योंकि बीमारी की रोकथाम के लिए मच्छरों की उत्पत्ति को रोकना जरूरी है। यह तभी संभव है जब सभी अपनी-अपनी जिम्मेदारी निभाएं।
वैसे डेंगू की महामारी दिल्ली के लिए कोई नई बात नहीं है। हर साल दिल्ली में डेंगू की बीमारी फैलती है। सरकार व नगर निगम का पूरा ध्यान डेंगू के रोकथाम पर केंद्रित है। पिछले साल तो कोई एजेंसी चिकनगुनिया के बारे में अनुमान भी नहीं लगा पाईं थीं। इस बार कोशिश होनी चाहिए कि बजट की कमी व वेतन की मांग को लेकर सफाई कर्मियों की हड़ताल के चलते राजधानी में सफाई-व्यवस्था प्रभावित न हो।
राजधानी की सिविक एजेंसियों को इस साल ज्यादा सचेत रहने की जरूरत है क्योंकि पिछली बार उनकी लापरवाहियों के कारण ही मच्छरों की उत्पत्ति साल के शुरुआत से ही अधिक थी। पिछले साल मच्छरों को मारने और उनकी उत्पत्ति रोकने के लिए सरकारी स्तर पर कोई अभियान नहीं चलाया गया। इस बार नगर निगम के चुनाव में यहां की जनता ने भाजपा को चुना है। नगर निगम कह रहा है कि फॉगिंग शुरू कर दी गई लेकिन उन्हें यह समझना चाहिए कि इस बार उन्होंने अगर जनता का विश्वास तोड़ा तो फिर वापसी मुश्किल होगी। उन्हें और राज्य सरकार को कोशिश करनी चाहिए कि इस बार जनता में दहशत का माहौल न बने और सब सुरक्षित रहें।

[ स्थानीय संपादकीय : दिल्ली ]