एक महोत्सव जैसे आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके अनेक सहयोगियों की ओर से शपथ लेने के साथ ही मोदी सरकार की दूसरी पारी का शुभारंभ हो रहा है। यह शुभारंभ जैसे खुशनुमा माहौल में और प्रमुख विपक्षी नेताओं के साथ-साथ आम लोगों एवं जानी-मानी हस्तियों की उपस्थिति के बीच शुरू हुआ उससे देश के साथ दुनिया भी भारतीय लोकतंत्र की महिमा और गरिमा से परिचित हुई। लोकतंत्र का मूल और मंतव्य यही है कि चुनावों के दौरान पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे से बेहतर जनसेवक साबित करने की चेष्टा करें और फिर जनता के फैसले को स्वीकार कर देश की प्रगति के लिए मिलजुलकर काम करें। अच्छा होता कि विपक्ष के वे नेता शपथग्रहण समारोह का बहिष्कार करने से बचे होते जिन्होंने इस मौके पर भी दलगत राजनीति को महत्व देते हुए इस समारोह से अपने को दूर रखा। यह सही है कि भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने प्रचंड बहुमत हासिल कर जनता की अपेक्षाएं बढ़ा ली हैैं, लेकिन लोकतंत्र एक सजग-सचेत विपक्ष की भी मांग करता है।

भले ही इस लोकसभा में विपक्ष पिछली बार के मुकाबले संख्याबल में कम हो, लेकिन अगर वह जनहित एवं राष्ट्रहित को प्राथमिकता दे और सकारात्मक रवैये का प्रदर्शन करे तो अपनी सार्थकता एवं महत्ता सिद्ध कर सकता है। उसे करना भी चाहिए। राष्ट्रीय महत्व के मसलों पर सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों से यही अपेक्षा की जाती है कि वे दलगत हितों से परे हटकर काम करें। विभिन्न मसलों पर पक्ष-विपक्ष में मतभेद होने स्वाभाविक हैैं, लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में मतभेदों के बीच ही सहमति कायम करनी होती है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार यह कहते रहे हैैं कि सरकार तो बहुमत से बनती है, लेकिन देश सबकी सहमति से चलता है। उनके इस कथन पर विपक्षी दलों की राय जो भी हो, इससे इन्कार नहीं किया जा सकता कि आज के दौर में जब देश बदल रहा है और उसकी अपेक्षाएं बढ़ रही हैैं तब राजनीति के तौर-तरीकों में बुनियादी बदलाव की सख्त जरूरत है। सबसे अधिक जरूरत संसदीय काम-काज में बदलाव लाने की है। इस बदलाव से राजनीति का भी भला होगा। पुराने, घिसे-पिटे और निष्प्रभावी तौर-तरीकों के कारण ही भारतीय लोकतंत्र श्रेष्ठ रूप नहीं ले पा रहा है। नि:संदेह भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है, लेकिन जरूरत तो इसकी है कि वह श्रेष्ठ एवं सशक्त लोकतंत्र बने।

नई सरकार के नेतृत्व में इस लोकसभा को ऐसा कुछ करना ही चाहिए जिससे श्रेष्ठ लोकतांत्रिक परंपराओं को सहजता से अपनाया जा सके। जहां तक मोदी सरकार के मंत्रियों की बात है, चूंकि केंद्रीय मंत्रिपरिषद के सदस्यों की कुल संख्या 81 हो सकती है इसलिए आने वाले समय में कुछ और मंत्री भी शपथ ले सकते हैैं। सभी मंत्रियों के शपथ लेने और उनके विभागों के बंटवारे के बाद ही उसकी क्षमता और योग्यता का सही मूल्यांकन किया जा सकता है, लेकिन इतना तो है ही कि अमित शाह के मंत्री बनने से मोदी सरकार एक सक्षम प्रशासक से लैस होने जा रही है। मंत्रिपरिषद में उनके साथ कुछ और नए चेहरों की उपस्थिति नई सरकार को और प्रभावी बनाने एवं बेहतर परिणाम देने वाली बननी चाहिए। 

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