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बसों की कमी और सड़क किनारे क्रैश बैरियर न होने से हादसों पर अंकुश पाना मुश्किल होगा। इन खामियों को दूर करने के लिए कदम उठाने होंगे

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हिमाचल प्रदेश में सड़क हादसों के बढ़ते ग्राफ पर अंकुश लगाना समय की मांग है। हर रोज पहाड़ की सड़कें खून से सन रही हैं और लोगों को जख्म मिल रहे हैं। हादसों में बेशक परिस्थितियां अलग रहती हों, लेकिन यह बताते हैं कि अभी तक हमने कोई सबक नहीं लिया है। हादसे किसी भी वजह से हों, लेकिन इनमें होने वाले नुकसान की भरपाई कोई नहीं कर सकता। शिमला से 13 किलोमीटर दूर कायना इलाके में आल्टो कार खाई में गिरने से बच्चे सहित चार लोगों की मौत हो गई, जबकि रामपुर क्षेत्र में बस हादसे में एक व्यक्ति की मौत हुई जबकि कई घायल हुए।

कार हादसा होने से बच सकता था यदि सड़क के किनारे क्रैश बैरियर या पैरापिट होते। पहाड़ी से गिरते पत्थर से बचने के लिए कच्ची सड़क पर उतारी कार अनियंत्रित होकर खाई में गिर गई। हैरत है कि कार में आठ यात्रियों को बैठाया गया था। रामपुर क्षेत्र में हुए बस हादसे की स्थिति भी कम चिंताजनक नहीं है। दरकाली के लिए रामपुर से एक ही बस सेवा है, जिसमें सुबह-शाम भारी भीड़ रहती है। बुधवार को जो बस भेजी गई, वह 37 सीटर थी जबकि यात्रियों की संख्या 60। कहा जा रहा है कि मौसम खराब होने के कारण यात्रियों की संख्या कम थी। इस रूट की बस पर अकसर 80 से 90 लोग यात्रा करते हैं।

यह सही है कि हादसा जब होना होता है तो हो ही जाता है और उसके पीछे कई तर्क दिए जा सकते हैं। 37 सीटर बस में 60 सवारियां बैठाना कहां की समझदारी है। यह जांच का विषय है कि सरकारी तंत्र आज तक इन क्षेत्रों के लोगों का दर्द नहीं समझ सका या सिर्फ बस भेजकर ही कर्तव्य की इतिश्री की जा रही है। पहाड़ी क्षेत्र में कई सड़कें ऐसी हैं, जहां क्रैश बैरियर या पैरापिट नहीं लगाए गए हैं। क्या लोगों की जिंदगी की कोई कीमत नहीं समझी जा रही। सरकारी स्तर पर सड़क सुरक्षा के लिए चाहे कितने ही अभियान चला लिए जाएं, लेकिन जब तक धरातल पर ठोस कदम नहीं उठाए जाते, हादसों के ग्र्राफ में कमी आना संभव नहीं है। सिर्फ रामपुर-दरकाली रूट ही नहीं बल्कि ऐसे कई रूटों पर बसों की समस्या है। इसके लिए जल्द ही आंकड़े जुटाकर बसों की व्यवस्था करनी चाहिए, ताकि हादसे की पुनरावृत्ति न हो। खतरनाक सड़कों के किनारे क्रैश बैरियर लगाकर भी हादसों को रोका जा सकता है। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना होगा।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]