यह पढ़ने-सुनने में भले अच्छा लगे कि बिगड़ती आबोहवा पर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को आदेश दिए हैं कि वह प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कदम उठाए, लेकिन इसके अनुकूल नतीजे मिलने की उम्मीद मुश्किल से ही की जा सकती है। एक सवाल तो यही है कि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को तब क्यों यह निर्देशित किया गया जब दिल्ली और साथ ही देश के कुछ अन्य भागों में प्रदूषण ने गंभीर रूप धारण कर लिया है? क्या केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को यह नहीं पता कि उसे कब क्या करना चाहिए?

पर्यावरण को दुरुस्त रखने के मामले में कितनी सुस्ती दिखाई जा रही है, इसका पता इससे चलता है कि दिल्ली और आसपास के इलाके में प्रदूषण फैलाने संबंधी करीब ढाई हजार शिकायतों में से केवल ढाई सौ पर ही कोई कार्रवाई की जा सकी है। यह सुस्ती तब दिखाई गई जब लगातार ऐसे समाचार आ रहे हैं कि दिल्ली और उससे सटे इलाकों की आबोहवा सेहत के लिए खतरनाक होती जा रही है।

यह घोर निराशाजनक है कि जब दिल्ली के साथ देश के दूसरे शहर गंभीर किस्म के वायु प्रदूषण के लिए बदनाम हो रहे हैं तब पर्यावरण मंत्रालय के साथ प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्रभावी नहीं साबित हो रहा है। यदि पर्यावरण मंत्रालय और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड देश की राजधानी में प्रदूषण रोकने में प्रभावी नहीं सिद्ध हो सकता तो फिर इसकी उम्मीद कैसे की जाए कि राज्यों की प्रदूषक निवारक एजेंसियां अपना काम सही से करने में समर्थ होंगी? इस मामले में यह ध्यान रहे कि तमाम तैयारी और चेतावनी के बाद भी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान समेत देश के अन्य हिस्सों में फसलों के अवशेष को जलाने से रोका नहीं जा सका।

यदि केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दिल्ली और आसपास के क्षेत्र में प्रदूषण को नियंत्रित कर देश के सामने एक उदाहरण पेश करने में सफल रहता तो शायद राज्य सरकारें और प्रदूषण की रोकथाम करने वाली उनकी एजेंसियां भी आबोहवा ठीक रखने के प्रभावी उपाय करने के लिए प्रेरित होतीं। अफसोस की बात है कि ऐसा उदाहरण सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद नहीं पेश किया जा सका। इससे खराब बात और कुछ नहीं कि जब दिल्ली को देश को राह दिखानी चाहिए थी तब वह नाकामी का प्रदर्शन करने में लगी हुई है। ऐसा इसीलिए है, क्योंकि कागजी कार्रवाई अधिक होती है।

प्रदूषण की प्रभावी रोकथाम के मामले में सरकारी तंत्र हर स्तर पर तब नाकाम है जब भारत के बारे में ऐसे अध्ययन लगातार आ रहे हैं कि यहां प्रदूषणजनित बीमारियों के कारण मरने वालों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। इससे उत्साहित नहीं हुआ जा सकता कि केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने दिल्ली सहित पड़ोसी राज्यों के पर्यावरण मंत्रियों और अधिकारियों की एक बैठक बुलाई है। यह बैठक दीवाली पर प्रदूषण बढ़ने की आशंका को दूर करने के लिए बुलाई गई है। आखिर जब दीवाली सिर पर आ गई है और ठंड भी बढ़ने लगी है तब पर्यावरण मंत्रियों की बैठक बुलाने का क्या मतलब? बेहतर हो कि हमारे नीति-नियंता यह समझें कि प्रदूषण के खिलाफ दिखावटी सक्रियता से कुछ नहीं हासिल होने वाला।