कपूरथला लोक अदालत का जालंधर-लुधियाना हाइवे पर टोल प्लाजा पर वसूली तुरंत प्रभाव से बंद करने का फैसला उन सब लोगों व संस्थाओं के लिए सबक ही नहीं बल्कि नजीर है जो सरकारी कार्यो के क्रियान्वयन में नियमों को मोम की नाक समझते हैं, जिसे जब चाहा मोड़ दिया। कानून को भी किस तरह नजरअंदाज कर दिया जाता है इसका उदाहरण है कि लोक अदालत ने याचिका पर सुनवाई के दौरान भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण व बिल्ट आपरेट एंड ट्रांसफर आधार पर सड़क का निर्माण कार्य देख रही कंपनी को बार-बार नोटिस भेजे परंतु उन्होंने नोटिस का जवाब देना तक मुनासिब नहीं समझा। ऐसे में लोक अदालत ने जवाब देने तक प्लाजा पर टोल पर वसूली को तुंरत प्रभाव से बंद करने के आदेश देकर यह संदेश भी दिया है कि कानून को इस तरह हल्के में नहीं लिया जा सकता। हालांकि लचर प्रशासनिक व्यवस्था के चलते अदालत के आदेशों को लागू होने में दो दिन का वक्त लगा। वैसे भी देखा जाए तो अभी तक हाइवे का काम ही पूरा नहीं है।

कहीं पर पुलों का काम अभी तक कछुआ चाल से चला हुआ है तो कहीं पर बिना किसी बेरिकेडिंग के खुला हाइवे दुर्घटनाओं को न्यौता दे रहा है। दैनिक जागरण की पड़ताल में ही यह चौंकाने वाला तथ्य सामने आया है कि जालंधर से लेकर लुधियाना तक ही 61 किलोमीटर के सफर में ही करीब साढ़े पांच सौ मौत के रास्ते हैं। जब हाइवे ही पूरी तरह से बनकर तैयार नहीं है तो फिर वर्षो से टोल किस बात का वसूला जा रहा था? लाडोवाल टोल प्लाजा शायद देश के उन चंद टोल प्लाजा में होगा जिसमें प्रतिदिन करीब पचास लाख रूपये की कमाई है। ऐसे में सरकार को यह सुनिश्चित कराना चाहिए कि अगर यहां से इतना टोल वसूला जा रहा है तो मार्ग का कार्य भी समय पर पूरा करवाया जाए। यह कार्य होना भी उच्च गुणवत्ता वाला चाहिए। अदालत को पूर्व में वसूले गए टोल का हिसाब भी कंपनी से लेना चाहिए और इसे सरकार के खजाने में जमा करवाना चाहिए।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]