सैनिक कॉलोनी में नेत्र विशेषज्ञ द्वारा मोतियाबिंद के मामूली ऑपरेशन से पहले आंख के नीचे बेहोशी का इंजेक्शन लगाए जाने से महिला की मौत हो जाना दुर्भाग्यपूर्ण है। हद तो यह है कि मौत के बाद डॉक्टर ने महिला के शव को कभी निजी अस्पताल तो कभी राजकीय मेडिकल कॉलेज अस्पताल के सुपर स्पेशलिटी में भेजकर पीडि़त परिवार को पूरे दिन अंधेरे में रखा। जबकि महिला की मौत इंजेक्शन के कुछ घंटो बाद क्लीनिक में ही हो गई थी। अगर डॉक्टर उसे पहले ही किसी सरकारी अस्पताल में भेज देते तो शायद उसकी जान बच सकती थी। डॉक्टर की लापरवाही के कारण महिला की मौत हो जाने के बाद परिजनों द्वारा क्लीनिक में तोडफ़ोड़ किया जाना भी गलत है। इस तरह की घटनाएं कई बार कानून व्यवस्था बनाए रखने में मुश्किलें पैदा करती हैं।

यह घटना वाकई दुखदायी है, क्योंकि मरने वाली महिला घर से मोतियाबिंद का साधारण ऑपरेशन करवाने आई थी। ऑपरेशन से पहले घरवालों ने उसके तमाम टेस्ट जिसमें ब्लड शूगर, ब्लड प्रेशर आदि करवाए थे। इससे तो लगता है कि डॉक्टर ने उसे हद से ज्यादा बेहोशी का इंजेक्शन दे दिया, जिसके कारण वह बेहोशी के आलम मेंं चली गई। ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिए मामले की जांच होनी चाहिए। बेशक पुलिस ने डॉक्टर को हिरासत में लेकर उसे पुलिस स्टेशन ले गई। फिलहाल पुलिस ने डॉक्टर के खिलाफ मामला दर्ज नही किया है। पुलिस अभी पोस्टमार्टम रिपोर्ट का इंतजार कर रही है। देखा जाए तो डॉक्टर के खिलाफ घोर लापरवाही और महिला की मौत की खबर से उन्हें करीब दस घंटो तक गुमराह किए जाने का मामला भी बनता है। स्वास्थ्य विभाग को चाहिए कि वह ऐसे क्लीनिकों की जांच करे जहां पर आपातकालीन सुविधाएं नहीं है। क्या इन क्लीनिकों में बेहोश करने वाले डॉक्टर हैं? पुलिस प्रशासन को भी चाहिए कि मामले की गंभीरता से जंाच करें। कहीं ऐसा न हो कि मामले की जांच केवल कागजी बन जाए। डॉक्टरों का यह दायित्व बनता है कि जब महिला की हालत गंभीर हुई तो उसके इलाज में कोताही न बरतते। लापरवाही से मौत के बाद लोगों का आक्रोश स्वाभाविक है। अगर इस तरह से मौत का सिलसिला जारी रहा तो नि:संदेह लोगों का विश्वास निजी क्लीनिकों से उठ जाएगा।

[ स्थानीय संपादकीय: जम्मू-कश्मीर ]