वैसे उपक्रम जिससे हम हाथी की जान बचा सकते हैं, उस पर और सक्रिय होने की जरूरत है। झारखंड के बिल्कुल पड़ोस में झारसुगुड़ा-बागडीह स्टेशन के बीच ट्रेन से कटकर हुई चार हाथियों की मौत ऐसी पहली घटना नहीं है। इसके पहले भी रेल पटरियों पर देशभर में हाथी के कटने की सूचना मिलती रही है। यूं यह घटना चक्रधरपुर रेल मंडल की है जो ओडिशा का क्षेत्र है, लेकिन झारखंड में भी ऐसी घटना हो चुकी है। हाथी-मानव संघर्ष की अलग दास्तां है। हाथी के बारे में ऐसा कहा जाता है कि अपने आसपास के करीब 250 किलोमीटर की दूरी तक उनका विचरण होता है। अभी कुछ दिन पूर्व साहिबगंज जिले में एक जंगली हाथी ने कई लोगों को मार डाला था। बाद में हंटर बुलाकर हाथी को गोली मारी गई थी। जीव विज्ञानी अक्सर यह बात करते हैं कि हाथियों की बसावट वाले जंगल में उनकी सुविधाएं सिमट रही हैं, जिससे वे इधर-उधर भटक कर चले आते हैं। देश में कई कॉरिडोर की पहचान हाथियों के विचरण को लेकर की गई है। झारखंड में भी जिन जंगलों से रेलगाड़ी गुजरती है, वहां की गति सीमा को नियंत्रित कर इस बात की कोशिश की गई है कि शून्य दुर्घटना हो, लेकिन विज्ञान सम्मत इस युग में केवल इससे काम नहीं चलेगा। कोई ऐसी सेंसर तकनीक ढंूढनी होगी, जिससे ट्रैक पर आते ही रेल ड्राइवर को मूवमेंट पता चल जाए।

हमें अनिवार्य रूप से ऐसे संसाधन के बारे में सोचना होगा, जिससे ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो। यह कोई मुश्किल काम नहीं है। बहुत आसानी से इसके बारे में सोचा जा सकता है। इसके साथ ही जहां रेल पटरी है, वहां कई अंडरपास बनाए जाने की जरूरत है। अभी इनकी संख्या कम है। वैसे भी झारखंड में हाथी को राजकीय पशु का दर्जा प्राप्त है। लेकिन, यहां भी मानव-हाथी संघर्ष की भी लंबी कड़ी है। अकेले बीते साल एक दर्जन से अधिक लोगों की मौत हाथी के पटकने से हो गई। झारखंड सरकार ने हाथी के कारण हुई मौत पर मुआवजे का प्रावधान तो किया है, लेकिन वे प्रावधान अभी अधूरे हैं, जिससे ऐसी मौत न हो इसकी व्यवस्था बने। जिस जगह हादसा हुआ है, उसके बारे में बताया जा रहा है कि यह एलिफेंट कॉरिडोर भी है और इससे पहले बीते साल भी ऐसे ही हादसे में हाथी की मौत के बाद यह तय किया गया था कि यहां ट्रेन की गति धीमी रहेगी। यदि सचमुच गति धीमी रहती तो कम से कम रेलवे को अभी यह खोज नहीं करनी पड़ती कि किस ट्रेन से इनकी मौत हुई है?

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ऐसी सेंसर तकनीक ढूढनी होगी, जिससे ट्रैक पर हाथी के आते ही रेल ड्राइवर को मूवमेंट पता चल जाए। ट्रेन की गति पर अंकुश लगे तभी हाथियों की जान बच सकेगी।

[ स्थानीय संपादकीय: झारखंड ]