माता वैष्णो देवी के पवित्र यात्र मार्ग पर स्थित हिमकोटी के साथ जंगलों में विगत दिवस आग लगने के कारण यात्र को रविवार सुबह तक रोक दिए जाने का फैसला लोगों के जानमाल की रक्षा को देखते हुए सही है। विडंबना यह है कि जम्मू संभाग में लगते जंगलों में गर्मी के मौसम में आग लगने की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। इसमें बहुमूल्य संपदा को भारी नुकसान पहुंचा है। इससे पहले जम्मू के बाहरी क्षेत्र रख रैका के जंगलों में आग से काफी नुकसान पहुंचा। अभी कटड़ा से पांच किलोमीटर दूर सरना गांव से सटे जंगलों में आग थमी भी नहीं थी कि माता वैष्णो देवी की त्रिकुटा पहाड़ियों पर आग लगने की घटना ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि आखिर आग की घटनाएं क्यों बढ़ रही हैं। माना कि सूर्य की रोशनी अगर सूखी घास में टूटे शीशे के टुकड़े पर पड़े तो उसकी किरणों से भी आग पकड़ लेती है। लेकिन कई बार यह आग जानबूझ कर भी लगाई जाती है ताकि बरसात के मौसम में मवेशियों के लिए घास अच्छी हो। आग लगने की घटनाओं के पीछे वन तस्करों का हाथ होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि त्रिकुटा पर्वतीय श्रृंखला में लाखों देवदार और चीड़ के वृक्ष लगे हुए हैं। ऐसे में वन तस्करों की कोशिश रहती है कि जंगलों में आग लगा दी जाए जिससे की हरे-भरे पेड़ सूख जाएं और बाद में वन विभाग इन्हें काटने के लिए मंजूरी दे दे। अगर लाइफ लाइन समङो जाने वाले जंगल इसी तरह आग की भेंट चढ़ते रहेंगे तो पर्यावरण पर भी इसका गहरा असर पड़ेगा। कुछ दिन पहले जम्मू के लंग्ज कहे जाने वाले रख रैका के जंगलों में आग लगने से जम्मू में तापमान 26 मई को 41.7 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया। अगर इसी तरह जंगल धधकते रहेंगे तो इससे जलवायु परिवर्तन पर गहरा असर पड़ेगा। जम्मू-कश्मीर में इस वर्ष कंडी क्षेत्रों में भू-जल का स्तर काफी नीचे चला गया है। पर्यावरणविदों को चाहिए कि जम्मू-कश्मीर में मौसम परिवर्तन को लेकर शोध करें क्योंकि वर्ष 2014 के सितंबर माह में राज्य में आई प्रलयकारी बाढ़ में सैकड़ों लोग मारे गए थे। इतना ही नहीं, इस बाढ़ में जानमाल के अलावा फसलों को भी काफी नुकसान हुआ। सरकार को चाहिए कि आग लगने की घटनाओं की जांच के निर्देश दे और इसमें कोई दोषी हो तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।

[ स्थानीय संपादकीय : जम्मू-कश्मीर ]