मंडियों में गेहूं की आमद सिर पर है और ऐसे में अनाज की खरीददारी करने वाली फूड ग्रेन एजेंसियों व पंजाब सरकार के वित्त विभाग में घाटे को पाटने के लिए जो कशमकश चल रही है, उसने गेहूं की खरीद को संकट में ला दिया है। दरअसल हर साल पंजाब सरकार को फूड ग्रेन एजेंसियों को करीब पंद्रह सौ करोड़ रूपया उनका घाटा पूरा करने के लिए देना पड़ता है। चूंकि अब पंजाब सरकार का खजाना खाली है तो सरकार के वित्त विभाग अपने हाथ पीछे खींचते हुए अनाज खरीदने वाली एजेंसियों को स्पष्ट कर दिया कि वह इस बार उनकी कोई मदद नहीं कर पाएंगे और जो भी वह खरीददारी करें उसमें शत प्रतिशत उनका अपना जोखिम होगा। वित्त विभाग ने यहां तक ताकीद कर दी है कि घाटे से बचने के लिए अनाज की खरीददारी करने वाली एजेंसियां अपने कामकाज में सुधार लाएं।

वित्त विभाग की ऐसी टिप्पणी के बाद अब एजेंसियां भी सकते में हैं। एजेंसियों ने भी वित्त विभाग की टिप्पणी के बाद तल्खी दिखाते हुए कह दिया है कि यदि उन्हें वित्तीय सहायता नहीं मिली तो उनके लिए मंडियों से गेहूं व धान की फसल को उठाना मुश्किल हो सकता है। फूड ग्रेन एजेंसियों के ऐसे व्यवहार के बाद हालांकि वित्त विभाग ने इस संकट से उबरने के लिए सात मार्च को बैठक भी बुलाई है परंतु यह मामला सुलझता हुआ नजर नहीं आ रहा है। यदि बैठक में वित्त विभाग और खरीद एजेंसियों में सामंजस्य न बना तो किसानों को फिर से संकट ङोलना पड़ सकता है। एक तरफ सरकार अनाज का उचित दाम देकर किसानों को राहत पहुंचाने के दावे कर रही है और दूसरी तरफ खरीद एजेंसियों को मदद के बजाए अपने हाथ पीछे खींच रही है। ऐसे में किसानों का भला कैसे हो सकता है। सरकार को चाहिए कि वह मंडियों से अनाज की खरीद के लिए उचित व पुख्ता प्रबंध करे ताकि किसानों को समय पर उनकी मेहनत का फल मिल सके।

[ स्थानीय संपादकीय: पंजाब ]