देश में कोरोना वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या दो लाख से अधिक हो जाने के साथ ही जिस तरह संक्रमण की रफ्तार तेज होने के आंकड़े सामने आ रहे हैं उससे यह साफ है कि इस खतरनाक वायरस से उपजी महामारी से फिलहाल छुटकारा मिलने वाला नहीं है। इसके बावजूद यह राहत की बात है कि देश में एक लाख से अधिक लोग इस महामारी को परास्त कर ठीक हो चुके हैं और संक्रमण के शिकार लोगों के ठीक होने की दर भी 50 प्रतिशत के करीब पहुंच गई है। यह भी राहतकारी है कि मरने वालों की संख्या अन्य देशों के मुकाबले कहीं कम है। जहां अमेरिका में एक लाख से अधिक लोग मर चुके हैं वहीं अपने देश में अभी यह संख्या छह हजार से कम ही है।

नि:संदेह करीब तीन माह में किसी एक बीमारी से इतने लोगों की मौत भी चिंताजनक है, लेकिन अन्य देशों में होने वाली जन हानि को देखें तो यही रेखांकित होता है कि भारत कोरोना के भयावह कहर से एक बड़ी हद तक बचा हुआ है। चूंकि स्वास्थ्य विशेषज्ञ यह कह रहे हैं कि अभी कोरोना वायरस के संक्रमण की चरम अवस्था आनी शेष है इसलिए इसके अलावा और कोई उपाय नहीं कि एक ओर जहां स्वास्थ्य ढांचे को सक्षम बनाने के हर संभव उपाय किए जाएं वहीं दूसरी ओर संक्रमण से बचने के लिए जो आवश्यक है वह किया जाए। इसके लिए सरकारों और उनकी विभिन्न एजेंसियों के साथ-साथ आम लोगों को भी सतर्कता का परिचय देना होगा।

यह ठीक है कि कोरोना संकट के बीच कारोबारी गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए लॉकडाउन से बाहर निकलने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि शारीरिक दूरी के नियम को शिथिल कर दिया है अथवा सेहत के प्रति अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत खत्म हो गई है। लॉकडाउन से बाहर निकलने की कोशिश वक्त की मांग थी। यदि जीविका के साधनों को बल देने के उपाय नहीं किए जाते तो कोरोना से अधिक नुकसान आíथक-व्यापारिक गतिविधियों के ठप रहने से हो सकता था।

चूंकि अभी संकट टला नहीं है इसलिए हर किसी के लिए यह आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि शारीरिक दूरी के नियम का पालन करते हुए जीवन को सावधानी के साथ संचालित करे। यह खेद की बात है कि सार्वजनिक स्थलों पर शारीरिक दूरी को लेकर लापरवाही का परिचय दिया जा रहा है। इसी तरह यह भी ठीक नहीं कि राज्य सरकारें अपने स्वास्थ्य तंत्र को दुरुस्त करने को लेकर तत्पर नहीं दिखतीं। इसके बजाय वे तरह-तरह के प्रतिबंधों का सहारा लेने लगती हैं। इससे समस्याएं कम होने के बजाय बढ़ ही रही हैं।