राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद का यह आंकड़ा बेहद खौफनाक है कि पंजाब में हर रोज 13 लोग दुर्घटनाओं का शिकार होते हैं। इससे भी हैरानी की बात यह है कि इतने लोग अकाल व अकारण मौत के गाल में आतंकवाद के दौर में भी नही समाते थे जितने अब सड़क हादसों के कारण समाने लगे हैं। परिषद के यह आंकड़े रोंगटे खड़े करते हैं कि हादसों में जहां वर्ष 2015 में 4893 लोगों की जान गई वहीं करीब 11 हजार लोग घायल हुए। यह आंकड़ा तो वह है जो परिषद के रिकार्ड में है। यह संभव है कि वास्तविक आंकड़ा इससे कहीं ज्यादा होगा क्योंकि बहुत से हादसे दर्ज ही नहीं हो पाते। वैसे तो देश भर में सड़क हादसे चिंता का विषय हैं लेकिन पंजाब इस मामले में दूसरे नंबर पर होने के कारण यहां की तस्वीर विचलित करने वाली है। हादसों के लिए लोग व सरकार दोनों जिम्मेदार हैं। लोग इसलिए क्योंकि ज्यादातर हादसे तेज रफ्तार के कारण होते हैं और सरकार इसलिए क्योंकि रफ्तार पर लगाम लगाने के लिए जरूरी कदम उठाने के मामले में उसके स्तर पर हीलाहवाली हो रही है। इसका उदाहरण है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद सरकार की ढील या अनदेखी की वजह से निजी सार्वजनिक परिवहन वाहनों पर स्पीड गवर्नर नहीं लग पा रहे। सवाल यह उठता है कि बिना इसके वाहन पास कैसे कर दिए जा रहे हैं? जाहिर है कि इस मामले में बड़े स्तर पर गड़बड़ी हो रही है। अगर ऐसा नहीं है तो बिना स्पीड गवर्नर वाले वाहनों के फिटनेस सर्टिफिकेट जारी होने ही नहीं चाहिए। यह तो समझ आता है कि व्यवसायिक रूप से इस्तेमाल होने वाले निजी वाहनों, खासकर बसों पर सरकार इसलिए हाथ डालने से कतराती है क्योंकि ज्यादातर का स्वामित्व है ही सियासी लोगों के हाथ में। कार्रवाई के नाम पर जो कदम उठाए जाते हैं, ऐसा लगता उनमें भी ज्यादातर सियासी रंजिश व बदला लेने के मकसद से होते हैं। इसी वजह से चाहे सरकार कोई आए, स्थिति वही बनी रहती है। ऐसा लगता है कि सरकार भी अब तब तक व्यवस्थाएं दुरुस्त नहीं करती जब तक कोर्ट का डंडा न चले। यह रवैया निराशाजनक ही नहीं, जानलेवा भी है। इससे पहले कि अदालत को हस्तक्षेप करना पड़े, सरकार को खुद ही परिषद की इस रिपोर्ट से चेत जाना चाहिए। आंखों पर पट्टी बांधे रखी गई और हाथ पर हाथ धरे बैठे रहे तो न जाने कितनी और जानें इस साल भी हादसों में चली जाएंगी। इसकी जिम्मेदार सरकार होगी।

[ स्थानीय संपादकीय:  पंजाब ]