माध्यमिक शिक्षा परिषद की हाईस्कूल और इंटर की बोर्ड परीक्षाओं में यूं तो नकल रोकने के प्रयास कई बार हो चुके हैं, लेकिन इस बार थोड़ी गंभीरता नजर आ रही है। बोर्ड ने ऑनलाइन केंद्रों का निर्धारण कर पारदर्शिता की ओर कदम बढ़ाए तो अब उत्तर पुस्तिकाओं की अदला-बदली रोकने के भी प्रभावी इंतजाम किए जा रहे हैं और यदि केंद्रों पर मौजूद परीक्षकों और व्यवस्थापकों की मिलीभगत नहीं हुई तो नकल पर काफी हद तक अंकुश लग सकता है। वैसे तो ऑनलाइन केंद्रों के निर्धारण को लेकर कई सवाल खड़े किए गए, लेकिन इसे भी स्वीकार करना होगा कि किसी सिस्टम की ओर पैर तो बढ़ाए गए। पहले तो सब कुछ अधिकारियों की मर्जी पर ही निर्भर रहा करता था। इसी तरह का यह दूसरा प्रयास भी एक सिस्टम खड़े करने की ओर ही है कि छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं की तरह अपने विषयों का इम्तिहान देना होगा और उपस्थिति पंजिका में उत्तरपुस्तिका का बुकलेट नंबर भी दर्ज करना होगा। इसमें परीक्षा केंद्रों की जिम्मेदारियां बढ़ गई हैं, लेकिन पहले चरण में पचास जिलों में किए जाने वाला यह प्रयोग यदि सफल होता है तो इसका श्रेय अधिकारियों के साथ उन्हें भी जाएगा।

यूपी बोर्ड की परीक्षाओं में नकल रोक पाना अब तक मुश्किल ही रहा है। एशिया की इस सबसे बड़ी परीक्षा में साठ लाख से अधिक परीक्षार्थी शामिल होते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों में नकल माफिया का पूरा नेटवर्क है। हर साल हजारों छात्र नकल करते पकड़े जाते हैं और हर साल नई योजनाएं शुरू होती हैं, लेकिन इस पर नियंत्रण नहीं किया जा सका। कुछ जिले तो नकल के गढ़ के रूप में कुख्यात हैं और वहां छात्रों को पास कराने के ठेके भी सुनियोजित तरीके से लिए जाते हैं, लेकिन इस पर अब तक अंकुश नहीं लग सका। वस्तुत: यूपी बोर्ड की प्रक्रिया परंपरागत है और वह नए प्रयोगों से अब तक कतराता रहा है। उसकी कोशिश किसी तरह परीक्षा पूरी कराकर अंत में समय से परिणाम देना का श्रेय लेने की ही रही है। यदि वास्तव में हाईस्कूल और इंटर की परीक्षाओं को नकलविहीन बनाना है तो इसके लिए गंभीर कदम उठाने होंगे और नई योजनाएं सामने लानी होंगी, जैसी कि उपस्थिति पंजिका में उत्तर पुस्तिका का बुकलेट नंबर दर्ज करने के रूप में अभी तय की गई है।

[ स्थानीय संपादकीय: उत्तर प्रदेश ]