कोई भी नियम या कानून किसी व्यक्ति विशेष का हित देखकर नहीं बनाया जाता बल्कि समाज के समग्र हितों को देखकर इन्हें लागू किया जाता है। जब नियमों का पालन न हो तो वह कार्य अपराध की श्रेणी में शामिल हो जाता है। इसके लिए चाहे सरकारी तंत्र जिम्मेदार हो या नियमों का पालन न करने वाले, जो भी दोषी हो, उसे सजा जरूर मिलनी चाहिए। धर्मशाला में अवैध खनन पर प्रदेश हाईकोर्ट का धर्मशाला के खनन अधिकारी को बदलने का आदेश ऐसे अधिकारियों के लिए सबक है, जो अपनी जिम्मेदारी को पूरा करने से बचते रहते हैं। धर्मशाला के खनियारा क्षेत्र में अवैध खनन व वन कटान पर अदालत में प्रथमदृष्टया झूठा शपथपत्र देने पर अधिकारी का तबादला जनजातीय जिले किन्नौर में करने का आदेश दिया है। हैरानी की बात है कि लोकल कमिश्नर ने खनियारा में अवैध खनन की बात को सही बताया था जबकि अधिकारी को कुछ ऐसा नहीं दिखा। जिम्मेदार पद पर बैठे अधिकारी का ऐसा आचरण उसे सवालों के घेरे में खड़ा करता है। जिस व्यक्ति पर खनन को रोकने की जिम्मेदारी है, अगर वही ऐसा व्यवहार करे तो निश्चित है कि माफिया की राह आसान ही होगी।

हिमाचल प्रदेश में स्थिति यह है कि शासन-प्रशासन की सख्ती के बावजूद अवैध खनन धड़ल्ले से जारी है। प्रदेश सरकार ने हाल ही में अवैध खनन के लिए सजा व जुर्माना बढ़ाया है, इसके बावजूद कीमती संपदा का अंधाधुंध दोहन कई तरह की चुनौतियां पैदा कर रहा है। यहां से रेत-बजरी से हिमाचल प्रदेश के साथ-साथ पड़ोसी राज्यों पंजाब व हरियाणा के अवैध खनन कारोबारी चांदी कूट रहे हैं। पैसे की चकाचौंध में खनन माफिया खनन नियमों की बलि चढ़ा रहा है। विकास के लिए बेशक भवन सामग्री का होना बहुत जरूरी है, लेकिन अवैज्ञानिक तरीके से खनन करना उचित नहीं ठहराया जा सकता। अवैज्ञानिक खनन से केवल पर्यावरण को हो नुकसान नहीं हो रहा बल्कि नदियों व खड्डों के रास्ता बदलने से उपजाऊ भूमि भी बह रही है। कई स्थानों पर पेयजल योजनाएं प्रभावित हुई हैं, जिससे लोगों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ रहा है। प्रदेश के हर हिस्से में नदियों व खड्डों में अवैज्ञानिक खनन जारी है व खनन विभाग व पुलिस की टीमें सिर्फ चालान काटने तक ही सीमित हैं। सरकारी अधिकारियों का जिम्मा ऐसे लोगों को सजा दिलाना है, जो कानून को धता बताते हैं।

[ स्थानीय संपादकीय: हिमाचल प्रदेश ]